माँ की महिमा

नैनन में है जल भराआँचल  में  आशीष |
तुम सा दूजा नहि यहाँ , तुम्हें नवायें शीश ||

कंटक सा संसार है, कहीं   न  टिकता  पांव |
अपनापन मिलता नहीं , माँ के सिवा न ठांव ||

रहीं लहू से सींचती , काया तेरी देन |

 संस्कार सारे दिए , अदभुद तेरा प्रेम ||

रातों को भी जागकर,   हमें  लिया है पाल |
ऋण तेरा  कैसे  चुके,    सोंचे    तेरे  लाल ||

स्वारथ  है  कोई  नहीं ना    कोई     व्यापार |
माँ  का अनुपम प्रेम   है,. शीतल सुखद  बयार ||

जननी को जो पूजता , जग पूजै है सोय |
महिमा वर्णन कर सके, जग में दिखै न कोय ||    

माँ तो जग का मूल है, माँ  में बसता प्यार |
मातृ-दिवस पर पूजता, तुझको  सब संसार ||

रचयिता:
अम्बरीष श्रीवास्तव " वास्तुशिल्प अभियंता"
९१, आगा  कालोनी, सिविल लाइंस सीतापुर २६१००१ (उत्तर प्रदेश )
भारतवर्ष
फ़ोन : +९१ ५८६२ २४४४४०
मोबाइल +९१ ९४१५०४७०२०

 

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