माँ की महिमा
नैनन में है
जल भरा,
आँचल
में
आशीष |
तुम सा दूजा
नहि यहाँ ,
तुम्हें
नवायें शीश ||
कंटक सा संसार
है,
कहीं न
टिकता
पांव |
अपनापन मिलता
नहीं ,
माँ के सिवा न ठांव ||
रहीं लहू से सींचती , काया तेरी देन |
संस्कार सारे दिए , अदभुद तेरा प्रेम ||
रातों को भी
जागकर,
हमें
लिया है पाल
|
ऋण तेरा
कैसे
चुके,
सोंचे
तेरे
लाल ||
स्वारथ
है
कोई
नहीं ,
ना
कोई
व्यापार
|
माँ
का अनुपम
प्रेम है,.
शीतल सुखद
बयार
||
जननी को जो
पूजता ,
जग पूजै है
सोय |
महिमा वर्णन कर
सके,
जग में दिखै न कोय ||
माँ तो जग का
मूल है,
माँ
में बसता
प्यार |
मातृ-दिवस
पर पूजता,
तुझको
सब संसार
||
रचयिता:
अम्बरीष
श्रीवास्तव "
वास्तुशिल्प अभियंता"
९१,
आगा
कालोनी,
सिविल लाइंस
सीतापुर २६१००१ (उत्तर
प्रदेश )
भारतवर्ष
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