"माँ" 

अपने रक्त से सिंचित करके माँ नें हमको जनम दिया , 
गर्भावस्था से ही उसने संस्कारों का आधार दिया | 
सर्वप्रथम जब आँख खुली तो मुख पे माँ ही स्वर आया , 
दुनिया में किस बात का डर जब सिर पर हो माँ का साया|| 

पहला स्वर सुनते ही उसने छाती से अमृत डाला, 
अपने वक्षस्थल में रखकर ममता से उसने पाला | 
प्रथम गुरु है माँ ही अपनी उससे पहला ज्ञान मिला, 
माँ का रूप है सबसे प्यारा सबसे उसको मान मिला || 

नारी के तो रूप अनेकों भगिनी रूप में वो भाती , 
संगिनी रूप में साथ निभाकर मातृत्व से सम्पूर्णता पाती | 
अपरम्पार है माँ की महिमा त्याग की मूरत वो कहलाती , 
उसके कर्म से प्रेरित होकर मातृ-भूमि पूजी जाती || 

माँ में ही नवदुर्गा बसती माता ही है कल्याणी , 
माँ ही अपनी मुक्तिदायिनी माँ का नाम जपें सब प्राणी | 
माँ के चरणों में स्वर्ग है बसता करते सब तेरा वंदन, 
तेरा कर्जा कभी न उतरे तुझको कोटिश अभिनन्दन || 
 

 
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