मैं ‘मैं’ हूँ !
‘आप’ कौन हैं
ये आपसे बेहतर कौन जानता है ?
वो तो ख़ैर वो ही है…
जब मैं और आप नहीं थे
वो था |
जब मैं और आप नहीं होंगे
वो बन जायेंगे |
आप के लिए
आप मैं और मैं वो है |
वो के लिए
वो तो
वो ही है |
दरअसल वो के लिए
मैं और आप भी
वो हैं |
मैं आप को आप
और
वो को वो
मानता हूँ |
शायद इसीलिए
मैं खुद को उत्तम कहता हूँ
परन्तु वो के सभी
अन्य है |
इसीलिए आजतक मैं और आप
हर किसी को वो बनाते रहे हैं |
वो की बची-खुची आस्था
मेरे मैं
और आपके आप होते ही
ख़त्म हो गयी |
अगर आप और मैं नहीं होते
वो उत्तम…
शायद सर्वोत्तम पुरुष होता |
पर हमने वो का
स्वत्व छीन लिया |
वो से उसका भव मांग कर
‘मैं’ मैं बना
और
आप ‘आप’ बने |
सच !
कितने लोभी हैं
मैं और आप |
और कितना दानी है वो !
शायद इसीलिए
मैं खुद से नफ़रत
आप से बगावत
और वो की इज्ज़त करता हूँ ||
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