ममत्व के प्रश्न (कविता)
जब आये तुम मेरे अंक
झूम उठे मेरे दिगंत
अधमुँदी पलकों में
मेरा नया अवतार मुस्काया,
देख तुम्हारी अकुलाहट
मची छाती मे कुलबुलाहट
एकटक तकते मुझे साक्षात् पहचाना
जनम तब मैंने सार्थक जाना
अमृतपान किया जब तुमने
उस घड़ी ही ये जनम जिया
तृप्त स्मित मुस्कान जब छाई
ममत्व भरी मैं बौराई
मन ही मन वारि सौ बार
चूमा तुम्हें हजारों बार
प्रेम सजीव हो मुस्काया
जषोदा की गोद कान्हा आया,
मातृत्व से हुई मालामाल
कौंध उठे कई सवाल
कितने बरस रहेगा तुम्हारा बचपन,
नन्हे कंधे पर भारी बस्ता
कितना कम कर सकूंगी ?
बचा पाउंगी संस्कृतियों की अंधी दौड़ से?
बंदूकों की धाँय धाँय,
गलियों के खूनी सन्नाटे को चीर
बिगुल बजाओगे
या झुका सिर विवष देखोगे?
तुम हालात बदलोगे या हालात तुम्हें ढाल देंगे
भीड़ में गुम हो जाओगे
या एक आगीवाण देखूंगी?
कितने ही साधारण बन जाना
किंतु घातक असाधारण न बनना
परिवार, कुल, देष का
कुमानुष न कहलाना!
------किरण राजपुरोहित 'नितिला'