मजदूर

 

मैं मजदूर हूँ

सुखों से दूर हूँ

मुसीबत का मारा हूँ

बहुतों का सहारा हूँ

चुनाव के वक्त

बनता सितारा हूँ

पहली किरण से

पहले ही उठता हूँ

शहर के चौराहे पर

कर के रूकता हूँ

दो जून की रोटी

पथ पर खोजता हूँ

 

अंधेरा है छाता,

तब आता हूँ कुटिया

देता हूँ पत्नी को,

आटा की पुड़िया को

बनाती है रोटी,

खाता हूँ सूखे

हफ़्ते में दो दिन,

सोता हूँ भूखे

 

छ्प्पर के नीचे से

दीखते हैं तारे

कोयले से लिखते हैं

बच्चे बेचारे

मजबूर हूँ मैं गरीबी के आगे

करूँ क्या जतन, यह जीवन से भागे

अकेला नहीं

आधी दुनिया है पीछे

कहीं हैं काँटे

कहीं हैं गलीचे

जीते हैं इनसान

हमसे भी नीचे

गरीबी की गाड़ी

बस मजदूर खींचे

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