मेघों
से
[महेंद्रभटनागर]
दौड़ते
आकाश-पथ
से
जा
रहे
किस
देश
को
घन?
देख
जिनको
कर
रही
सज्जा
प्रकृति-बाला,
देख
जिनको
आज
छलकी
पड़
रही
हाला,
जो
लगाये
आश,
उनको
छोड़कर
क्यों
जा
रहे
घन?
हर
तृषित
की
प्यास
को
तुमको
बुझाना
है,
हर
भ्रमित
को
राह
भी
तुमको
सुझाना
है,
पर,
बिना
बरसे
अरे
तुम
जा
रहे
किस
देश
को
घन?
यों
तुम्हारा
देर
से
आना
नहीं
अच्छा,
फिर
गरजकर,
क्रोध
में
जाना
नहीं
अच्छा,
एक
पल
रुककर
बताओ
जा
रहे
किस
देश
को
घन?
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