कभी-कभी मैं सोचता हूँ
क्यों किसी के हिस्से की धूप
किसी और के आंगन में
उतर जाती है और क्यों
किसी पात्र व्यक्ति के
हिस्से की खुशियाँ
कोई अपात्र व्यक्ति
लूट ले जाता है।
एक मज़दूर जो रात-दिन
करता है मेहनत
और तैयार करता है एक बंगला न्यारा
क्यों उसे उसमें नहीं मिलता है
एक रात बिताने का भी मौका।
क्यों कोई व्यक्ति अपने जिस्म का
हिस्सा समझकर जिसकी
करता है हिफाज़त सालों साल
वर्षों जिसे चाहता है, पूजता है
और जन्म जन्मान्तर तक साथ रहने की
लालसा लिए है जीता
एक दिन अचानक क्यों वह
बना दी जाती है किसी और के
घर-आँगन की तुलसी
बगैर यह जाने कि उस आँगन की हवा,
वहाँ का पानी और वहाँ की मिट्टी
उसके माफिक है भी या नहीं।
यदि सभी को अपने-अपने
हिस्से की घूप,
मेहनत का फल,
हिस्से की खुशी और प्यार मिले
तो इसमें भला क्या बुराई है।
कुछ लोग कहते हैं,
जिसके हिस्से या जिसके भाग्य में
जो चीज़ लिखी होती है
वही उसके हिस्से में आती है।
किसी के चाहने
या न चाहने से इस पर
कोई फर्क नहीं पड़ता है,
यही ईश्वर का विधि विधान है।
पर मैं इससे सहमत नहीं।
ईश्वर तो सर्वशक्तिमान, दयालु और
सबका भला चाहने वाला है।
उसकी नज़र में तो
सभी के सुख-दुख
उनकी अपनी मेहनत और
कर्मों के अनुसार ही होने चाहिए।
वह भला क्यों चाहेगा
कि एक ग़़रीब व्यक्ति
जो रात-दिन करता है मेहनत
सिर्फ भाग्य के चलते
उसकी थाली की रोटी
बन जाए किसी और के मुंह का निवाला ।
और एक जैसे मन के
दो विपरीत लिंगी व्यक्ति जो
सदा समर्पित रहते हों एक-दूसरे के लिए और जो समझते हों सदा अपने आपको
एक-दूसरे के लिए बना
क्यों वह पलक झपकते ही
कर दिये जाएं एक दूसरे से अलग
और डाल दिए जाएं
किन्हीं औरों की झोली में
चाहे उन्हें उनकी ज़रूरत हो भी या नहीं।