नारी आज
पैंट तो पहन लिया है तुमने,
पर उतारी नहीं है पैरों की पायल .
ओढ़ ली है
नारी प्रगति के नाम पर
पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर तुमने
बाहर की जबाबदारी
पर अब भी लदी हुई है पूर्ववत
तुम पर घर की जिम्मेदारी .
अच्छा लगता है जब तुम्हें देखता हूँ ,
पुरुष साथी को साथ बैठाये
स्कूटी या कार चलाते हुये
पर सोचता हूँ कि
तुम थक जाती होगी ,
क्योंकि
रोटियाँ तो तुमसे ही माँगते हैं बच्चे.
थके हारे क्लाँत पुरुष को
तुम्हारे ही अंक में मिलता है सुकून .
तुम्हें पंख लगाकर ,
कतर लिये हैं
फैशन की दुनिया ने
तुम्हारे कपड़े .
छद्म रावणों
दुःशासन और दुर्योधनों की
आँखों से घिरी हुई,
महसूस करती हो हर तरफ
मर्यादा का शील हरण .
पर तुम बेबस हो .
इस बेबसी का हल है
मेरे पास .
पहनो शिक्षा का गहना ,
मत घोंटने दो
कोख में ही गला
अपनी अजन्मी बेटी का ,
संसद में अक्षम नहीं होगा
स्त्री आरक्षण का बिल
जब सक्षम होगी स्त्री .
और जब सक्षम होगी स्त्री
तब तुम
बाहर की दुनियाँ सम्भालो या नहीं
घर , बाहर ससम्मान जी सकोगी .
पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर .
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vivek ranjan shrivastava