नागमती (वियोग खण्ड)
-----जायसी
पिउ
बियोग अस बाउर जीऊ ।
पपिहा
तस बोलै पिउ जीऊ ॥
अधिक
काम दगधै सो रामा ।
हरि
जिउ लै सो गएउ पिय नामा ॥
बिरह
बान तस लाग न डोली ।
रकत
पसीजि भीजि तन चोली ॥
सखि
हिय हेरि हार मै मारी ।
हहरि
परान तजै अब नारी ॥
खिन
एक आव पेट मँह स्वाँसा ।
खिनहि
जाइ सब होइ निरासा ॥
पौनु
डोलावहिं सीचहिं चोला ।
पहरक
समुझि नारि मुख बोला ।।
प्रान
पयान होत केइँ राखा ।
को
मिलाब चात्रिक कै भाखा ॥
आह जो
मारी बिरह की, आगि उठी तेहि हाँक ।
हंस
जो रहा सरीर मँह, पाँख जरे तन थाक ॥
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