नव वर्ष की किरण कुछ यूँ आए 
आतंक का ये अंधकार मिट जाए 
उषा जागे निशा भागे 
देख सके इन्सान कुछ और आगे  
खुश हो न जाए मात्र तसल्ली पाके
कुछ ठोस विचारों में भी वो झांके 
उत्साह की बयार  घर घर छाये 
आतंक का ........................
कोई न रोटी को तरसे 
खेतों में पानी समय पे बरसे 
मरे न किसान आत्महत्या करके 
माँ भारती की आंखों से न आंसू बरसे 
दुआ ये हमारी  काश कबूल हो जाए 
आतंक का ................................
दुनिया को राह दिखने वाला ख़ुद भटक गया 
अपने ही सपूतो के हाथों लुट गया 
जो था देश भारत प्रदेशों में बट गया 
इसीलिए बाहर वाला इज्जत पे दाग लगा गया  
काश विश्व के मानचित्र पे भारत फ़िर मुस्काए 
आतंक का .............................
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