ऐ भगवान !
मेरी शक्ति को पहचान !
तुझे अपनी फ़ितरत है बड़ा गुमान
प्रकृति की लीला पर बघारता है शान
तुझे मेरी शक्ति का नहीं है ग्यान
तभी तो तू अभी तक बना है महान ।
लोग कहते हैं तेरे घर देर है, अंधेर नहीं
मैं कहता हूँ तेरे घर अंधेर है,देर नहीं ।
लोग समझते तुझे दयालू,कहते हैं भगवान,
मैं समझता तुझे निर्दयी, कहता हूँ शैतान ।
अगर मुझे पता मालूम होता,तुझे गिरफ़्तार करवाता,
न्यायाधीश पर रौब डालकर,तुझे फ़ांसी दिलवाता ।
मैं कौन हूँ,क्या हूँ, तुझे मालूम नहीं ,
तेरे गरूर को चकना-चूर कर,तुझे धूल में मिलाता ।
मगर क्यों ? तू जानना चाहता है तो सुन
सबको तूने दिल न दिया,जिसे दिल दिया उसे दर्द न दिया ।
दिलवालोम को तूने कलम पकड़ा दी,
बेदर्द लोगों को धन की गठरी थमा दी ।
क्या तेरा न्याय,भीरू है,बेजुबान है,
मासूम बच्चों की तरह नादान है ।
तेरी हुकूमत सारे देश में चलती है ।
तुझे कोई नहीं जानता,मंदिर का पुजारी भी नहीं,
मुझे सब जानते हैं,मेरी दूकान चलती है,
मेरे नाम का डंका बजता है ।
तू जमीन में बैठ,जमीन तेरे लिए है
मैं कुर्सी के लिए हूँ,कुर्सी मेरे लिए है
तू जमीन के लिए ईमान नहीं बेच सकता
मैं कुर्सी के लिए ईमान बेच सकता हूँ
कुर्सी के लिए भगवान बेच सकता हूँ
मैं बुज़दिल नहीं हूँ , तुम्हारी तरह
कुर्सी के लिए हिन्दुस्तान बेच सकता हूँ ।
क्योंकि तू नेता नहीं है,नेता की पूँछ भी नहीं है ।
और मैम नेता हूँ,सब मेरी पूँछ है ।
क्या तू बहरा है भगवान ?
लोग मस्जिदों में उँगली लगाकर अजान करते हैं
मंदिरों में घंटा बजाकर तेरा ध्यान करते हैं
गिरिजाघरों में मोमबत्ती जलाते हैं लोग
तो तू क्या समझता है,तेरा नाम करते हैं
एक मैम हूँ !
मस्जिदों में मेरे नाम की तदवीर होती है
चुनाव जीतने के लिए तकरीर होती
मंदिरों में मृदंग बजते हैं मेरे नाम के
लोग मेरे दर्शन को अधीर होते हैं ।
क्या तू अंधा है भगवान ? देखता नहीं ।
रोज तेरे नाम से कितने लोगों को भड़काता हूँ
मंदिर-मस्जिद के दंगे में कितनों को मरवाता हूँ
फ़िर भी मसीहा बना हूँ,दुनिया की नजरों में
क्योंकि हर लाश पर एक लाख दिलवाता हूँ ।
नहीं चाहिये अब एहसान तेरा
टेस्ट ट्यूब में हमने बच्चा संवारा है
तुझमें क्या हिम्मत है,मुझसे टकराने की
पहले अपना घर देख,यवनों ने बिगारा है ।
फ़ँस गई है गोटी तेरी, भारत की अदालत में
चप्पल घिस जायेगी अगर न्याय का सहारा है ।
इसीलिए कहता हूँ,बेबस भगवान सुनो !
आज तुझे खुद भी बेबसी ने मारा है ।
कैसे तुम बनते हो,भक्तों के दीन-बन्धु
खुद आज दीन हुए,कभी न विचारा है
यही है लोकतंत्र की महिमा निराली राम,
सीधे न मानो तो गोली का इशारा है ।