पद   -----     विद्यापति

 

 

सखि हे हमर दु:खेर नहि ओर ।

ए भर बादर माह भादर शून्य मन्दिर मोर ।

झम्पे घन गरजन्ति सन्तति भुवन भरि बरिखन्तिया ।

कन्त पाहुन काम दारुन सघने खर सर हन्तिया ॥

कुलिस कत शत पात मोदित मयूर नाचत मातिया ।

मत दादुरि डाके डाहुक फ़ाटि जायत छातिया ॥

तिमिर भरि भरि घोर जामिनि न थिर बिजुरिक पाँतिया ।

विद्यापति कह कैछे गोंआयबि हरि बिने दिन रातिया ॥

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