प्रेम डगरिया
प्रेम डगरिया ही ऐसी है जहां न लुटने
का ग़म होता
नयन सजल हों ढल जाएं पर अश्रुकोष नहीं
कम होता।
मदमाती पलकों की छाया,
मिल जाती यदि तनिक पथिक को,
तिमिर,
शूल से भरा मार्ग भी आलोकित आनन्द-सम
होता।
डगर प्रेम की आस प्रणय की उद्वेलित
हों भाव हृदय के,
अंतर ज्योति की लौ में जल कर नष्ट
निराशा का तम होता।
विछड़ गया क्यों साथ प्रिय का,
सिहर उठा पौरुष अंतर का,
जीर्ण वेदना रही सिसकती,
प्यार में न कोई बंधन होता।
अकथ कहानी सजल नयन में लिए सोचता पथिक
राह में,
दूर क्षितिज के पार कहीं पर,
एक अनोखा संगम होता!
महावीर शर्मा