पुष्प
की अभिलाषा -- माखन
लाल चतुर्वेदी
चाह
नहीं, मैं सुरबाला के गहनॊं में गूँथा जाऊँ,
चाह
नहीं प्रेमी – माला में बिंध प्यारी को ललचाऊँ,
चाह
नहीं सम्राटों के शव पर हे हरि डाला जाऊँ,
चाह
नहीं देवों के सिर पर चढ़ूँ भाग्य पर इठलाऊँ,
मुझे
तोड़ लेना बनमाली !
उस पथ
में देना तुम फ़ेंक !
मातृ
– भूमि पर शीश चढ़ाने,
जिस
पथ जावें वीर अनेक ।
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