आदमियत न आये ,तो ’वह क्या करे’ ?
देने वाले ने दुनिया की ,हर चीज दी ,
पाने वाला न पाये, तो ’वह क्या कर” ।
शक्ल दी, अक्ल दी, दे दिया कुल जहाँ,
मुख भी दिया, मुख में शीरी जुबां ।
रूप, यौवन दिया, प्रेम बंधन दिया,
’दिल दिया’ दिल के सीने में अरमां दिये ।
लिखा भी दिया ,सिखाने को ’बंदों ’ को भेजा यहाँ,
काम ही में न लाये ,तो ’वह क्या करे’ ?
’जिंदगी’ भी दी और सारे ’सलीके’ दिये ,
’खुद’ को मिलने के सारे ’तरीके’ दिये,
बंदगी छोड़कर ,प्रभु को भूलकर,
’खुद’ संभल ही न पाये ,तो ’वह क्या करे’ ।
देने वाले ने रखी, कसर ही नहीं,
पाने वाले के दिल पर, असर ही नहीं ।
आदमी को न भूला है,पर वो कभी,
आदमी ही भूल जाये, तो ’वह क्या करे’ ?
तेरे हाथों में दी, करम की कलम,
नाम तू कमाये, तो ’वह क्या करे’ ?

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