जब छिड़ती है तान 
गूँजती है  झंकार
धीरे धीरे आते सभी
वाद्य यन्त्र 
एक दूजे की संगत में 
एक ही  सुर ताल में 
एक दूजे के लिए 
एक दूजे के होकर 
एक दूजे संग 
एक ही अनुशासन में  
एक ही लय में 
एक ही गति से 
करते  है समयबद्ध कर्म..........

तब उपजता   है संगीत 
होता वही कर्ण प्रिय
मर्मस्पर्शी प्रभावी 
सुनते ही जिसे 
होता मन प्रफुल्लित 
और हम सब 
कुछ पल जाते है ठहर 
क्योंकि ये सब 
निभाते हैं संगत का ही धर्म.........  

ठीक इसी तरह 
चाहे हो कैसा भी 
कोई भी 
जीवन का क्षेत्र 
हम सब अपनायें 
यदि  ऐसा ही 
सदभाव  समर्पण व सामंजस्य
ऐसी ही संगत में 
तो वह कर्म भी होगा प्रभावी 
सदैव
संगीत की ही तरह 
यही है संगीत का मर्म .........

क्योंकि संगीत जन्मा है 
ऐसी ही अच्छी संगत से .........

--अम्बरीष श्रीवास्तव 
 

 
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