सवैया
----------हरिश्चन्द्र
घेरि घेरी
घन आये छाय रहे चहुँ ओर
कौन हेत
प्राननाथ सुरति बिसारी है ।
दामिनी
दमक जैसी जुगनूँ चमक तैसी,
नभ में
बिसाल बग – पंगति सँवारी है ।
ऐसी समै
हरिचन्द धीर न धरत नेकु,
बिरह –
बिथा तें होत ब्याकुल पियारी है ।
प्रीतम
पियारे नन्दलाल बिनु हाय यह,
सावन की
रात किधौं द्रौपदी की सारी है ।
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