शोभा क्षण
फ़ूलों
से लद गए दिशा क्षण
भरता
अंबर
गुम्जन,
पुलकों
में हँस उठा सहज–मन
निर्झर
करते
गायन !
अवचेतन
में
लीन पुरातन,
स्वप्न
वृष्टि अब करता नूतन,
तन्मय हुआ
अहं युग युग का
बाँहों
में
बँध चेतन !
यह क्या
भावी का संवेदन
या देवों
का मौन निमंत्रण !
देह प्राण
के पुलिन डुबाकर
बहता
अंतर
यौवन !
धरा शिखर
का रे यह मधुवन
भू
मन अहरह
करता क्रंदन –
मृणमय
पलकों पर फ़िर उतरे
यह
शाश्वत
शोभा क्षण !
आओ हे, यह
निभृत
प्रीति मग,
धरो
ध्वनित पग – चिह्नों पर पग,
अश्रुत
पद
चापों से
गुंजित
आज
धरणि
का
प्रांगण !
रजत
घंटियाँ
बजतीं
छन छन,
स्वर्निम
पायल झंकृत
झन झन,
स्वप्न
मांस के
इन
चरणों पर
करो
प्राण
मन
अर्पण !
पद गति से
शोभा पड़ती झर,
पग छबि
उठती भावों से भर,
सृजन
नृत्य रत रे कवि अंतर
सुन
नुपुर
ध्वनि
गोपन !