सूत सी इच्छाएं... 
-अजन्ता शर्मा           

रोते रोते 
जी चाहता है 
मोम की तरह गलती जाऊं 
दीवार से चिपककर 
उसमें समा जाऊं. 

पर क्या करुं! 
हाड-मांस की हूं जो! 
जलने पर बू आती है 
और 
सामने खडा वो 
दूर भागता है. 

मेरी सूत सी इच्छाओं को 
कोई 
उस आग से 
खींचकर 
बाहर नहीं निकालता. 
 

 
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