छोड़ो आस मधुप मधु रस का
सूख गया पुष्पित अन्तस्तल।
सूख गयी कलिका भी उर की
बन्द हुए दृग संपुट अविरल।।1।।
पावस आस लगाकर बैठा
आयेगा प्रियतम मधुमास।
मन्द पवन छेडे़गा सरगम
मिलन करेगा मधुरिम हास।।2।।
व्यर्थ सोचता है मन मे यह
क्योंकि सब जीवन का सपना।
मघु मरन्द रस ले लेता है
अली हुआ कब कली का अपना।।3।।
निज स्वारथ के वशीभूत हो
अली नाचते है मतवाले।
कली समझकर अपना उनको
बॉहों मे निज बाहे डाले।।4।।
यौवन रस ले लेता अलि
उड़ा उड़ा कहीं दूर चला।
उस निरीह नीरस कलिका के।
अन्तस्तल में व्यथा पला।।5।।
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