ठंडी सी छांव


दुर्गम पथ और भरी दोपहरी
दूर है मेरा गांव ,
थका बटोही मनवा चाहे
रिश्तों की ठंडी सी छांव ।

पगडंडी पर चलते चलते
कोेई तो दे अब साथ ,
श्वासों में जब कम्पन हो तो
कोई थाम ले हाथ ।

निर्जन मग चंदा छिप जाए
जुगनु सा जल जाए कोई ,
भूलूं जब भी राह डगर मैं
तारा बन मुसकाये कोई ।

गोदी में सर रख ले जब
कोई कांटा चुभता पांव ।
थका बटोही मनवा चाहे
रिश्तों की ठंडी सी छांव ।

दूर बसेरा .शिथिल हो गात
नीरव मूक खड़ी हो रात,
बीहड़ जंगल, घना हो कोहरा
अंधियारे में धुंधला प्रात।

कारी बदली आकर ढक दे
नभ की तारावलियां जब,
भूलूं पथ, भूलूं मैं मंज़िल
भूलूं अपनी गलियां जब ।

कोई मुझे आह्वान दे
जब भूलूँ अपना नाम ।
थका बटोही मनवा चाहे
रिश्तों की ठंडी सी छांव ।

 

HTML Comment Box is loading comments...

Free Web Hosting