बना हुआ एक कच्चा, अधगिरा मकान था ।
शायद उसका ही नाम,’मेरा भारत महान था ’ ॥
कुछ हलचल थी, कुछ जन रहते थे ।
जाड़े में ठंड,गर्मी में तपन, मजबूरी में सहते थे ॥
आगे –पीछे खुली सड़क थी,लम्बा रास्ता था ।
ऐसे ही जीना है,न किसी से कोई वास्ता था ॥
वख्त गुजर रहा था,बेरहम नजारा था ।
और आगे जाने पर,गाँव का एक किनारा था ॥
उसी में ,कुछ खिली,कुछ अधखिली कलियाँ थीं ।
और ठीक बगल में,कुछ सड़ाध और बदबूदार गलियाँ थीं ॥
कुछ दूर जाने पर भयानक श्मशान था ।
इन सब के बीच ’उनका भारत महान’ था’ ॥
बटोरकर लाये,कुछ जूठन के पत्ते थे ।
बिस्तरों की जगह,घास-फ़ूस गत्ते थे ॥
कुत्तों की नजरों से,भोजन में व्यवधान था ।
एक ओर खड़िया से लिखा,मेरा भारत महान था ॥
भूख मिटाने के लिए,सभी बेहाल थे ।
जिसके हाथ में जूठे पत्ते थे ,वे मालामाल थे ॥
जिंदगी सरकती जा रही थी,न कुछ गुमान था ।
सरकारी आँकड़ों में सब कुछ ’मेरा भारत महान’ था ॥
कच्ची मिट्टी और गोबर से पुता जर्जर मकान था ।
इसी में यौवन छिपाने का फ़टा-पुराना सामान था ॥
भयानक वर्षा से हर समय दीखता आसमान था ।
उसी में रखता,सब तरह का थोड़ा-थोड़ा सामान था ॥
भिखारी,बेगारी, मजदूरी,पुराना व्यवसाय था ।
मजबूरी-भुखमरी,जिसका दूसरा नाम था ॥
लाचारी,बेगारी और कूड़ा बीनना दिनचर्या काम था ॥
सरकारी आँकड़ों में ,ऐसे झोपड़ों का नाम भी,
------------------ मेरा भारत महान था ।
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