वह मौन था !
रो उठी
व्याकुल निशा -
वह
मौन था !
सिसकती वेदना
कराह रही उस झोंपड़ी की चेतना में !
था
भूख औ बेकारी से यौवन जरा-सम,
अकुला रही थी भूख भी
जड़वत नयन की पुतलियों में !
उस
दर्द पर
मक्खियां थी भिनभिनाती
और
भिनभिनाहट के सिवा
हर
चीज़ वहां खामोश थी ।
क्षुधा - पीड़ित
मर चुका
था !
मिट गई थी हर व्यथा
वह
मौन था !!
रो उठी
व्याकुल निशा -
वह
मौन था !
सिसकती वेदना !
जल
रही थी स्वप्न की निशि होलिका में
संजोये आशा की मिटती किरण
चिर विरह कुण्ठित हुई
रोती रही
गाती रही !
खो
गया जीवन समूचा
उस
गीत की आवाज़ में
,
अतिरिक्त उस आवाज़ के
जो
कुछ भी था निःशब्द था
चिर विरही !
मर
चुका था,
मिट गई थी हर व्यथा
वह
मौन था !!
-
महावीर शर्मा