विजयादशमी
आज विजयादशमी है !
आज, एक विशेष दिन है
आज भी तो रावण के पुतले जलेंगे,
हर वर्ष की तरह
और, अगले वर्ष कई और खड़े हो जायेंगे !
....क्या वर्ष भर.... हम रावण से मुक्त रहेंगे ?
नहीं,...तब तक नहीं
जब तक, दस इन्द्रियों वाले दशरथ का
विवेक रूपी पुत्र राम
निर्वासित किया जाता रहेगा,
और रावण रूपी अहंकार
बुद्धि रूपिणी पुत्रवधू सीता को
हर कर ले जाता रहेगा,
अब सीता राम का मिलन होता ही नहीं
यदि होता तो राष्ट्र आतंक के साये में न जीते
हम दूध के नाम पर रसायन
और दवा के नाम पर जहर न पीते
न होती विषमताएं समाज में
न होता रावण राज !
आखिर कब घटेगा दशहरा हमारे भीतर?
कब ?
तभी न, जब
विवेक राम का साथ देगा
वैराग्य लक्ष्मण
दोनों प्राण रूपी पवन पुत्र के जरिये
बुद्धि सीता को मुक्त करेंगे
तब होगा रामराज्य
जर्जर हो यह तन, बुझ जाये मन
उसके पहले
जला डालें अपने हाथों
अहंकार रावण, मोह रूपी कुम्भकर्ण
लोभ रूपी मेघनाथ भी
उसी दिन होगी सच्ची विजयादशमी !
अनिता निहालानी
१६ अक्तूबर २०१०