व्यर्थ विषय
-अजन्ता
शर्मा
क्षणिक भ्रमित प्यार पाकर तुम क्या करोगे?
आकाशहीन-आधार पाकर तुम क्या करोगे?
तुम्हारे हीं कदमों से कुचली,
रक्त-रंजित भयी,
सुर्ख फूलों का हार पाकर तुम क्या करोगे?
जिनके थिरकन पर न हो रोने हँसने का
गुमां
ऐसी घुंघरु की झनकार पाकर तुम क्या
करोगे?
अभिशप्त बोध करता हो जो देह
तुम्हारे स्पर्श से,
उस लाश पर अधिकार
पाकर तुम क्या करोगे?
तुम जो मूक हो,
कहीं बधिर,
तो कुछ अंध भी
मेरी कथा का सार
पाकर तुम क्या करोगे?