"वादों के पुष्प "


बिखेरता रहा वादों के पुष्प वो
 
मै आँचल यकीन का बिछाये
 
उन्हें समेटती रही....
 
अपने स्पर्श की नमी से वो
 
उन पुष्पों को जिलाता रहा
मै मासूम शिशु की तरह
 
उन्हें सहेजती रही......
 

हवाओं को रंगता रहा वो
 
इन्द्रधनुषी ख्वाबो की तुलिका से
 
मै बंद पलकों मे
 
उन्हें बिखेरती रही ....
 
आज सभी वादों का वजूद
 
अपना आस्तित्व खोने लगा .......
मै अवाक टूटते मिटते हुए
 
उन्हें देखती रही........

 

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