उफ़ बारिश के ये दिन पानी में कश्ती बहाने छपाक से दूसरो को भिगाने रेन कोट पहने के सुन्दर बहाने छतरी लगा के इतराने के दिन उफ़ ये बारिश के दिन जब छत पर भीगा करते थे बूंदों के संग अठकेलियाँ कर गीत नया गया करते थे माँ कि डांट कि भी कहाँ परवाह किया करतें थे वो बेफिक्री के दिन उफ़ ये बारिश के दिन बारिश कि पहली फुहार से उठती थी माटी कि खुशबु पूरी गलियां महक उठतीं पत्ती पत्ती डाली डाली सजती मन में बसी है आज भी वो खुशबु वो नरम गरम से दिन उफ़ वो बारिश के दिन रिमझिम फुहार के बाद ठेले पर भुट्टे भुनवाना भीगते हुए उनको खाना याद है आज भी वो सोंधा स्वाद वो स्वादों के दिन उफ़ ये बारिश के दिन घिरते थे जो मेघ मन में सोचा करते थे बरसे उमड़ घुमड़ इतना के आजाये सड़कों पर पानी इतना हो जाये रेनी दे बहुत दुआं यही माँगा करते थे वो छुट्टी पाने के दिन उफ़ वो बारिश के दिन रात में बदल कि गड गड़ से जब हम बहने डर जाया करते थे पकड़ के एक दुसरे को माको बुलाया करते थे वो मान के संग सोने के दिन उफ़ ये बारिश दिन बारिश में जब चली जाती थी बिजली टटोलते टटोलते मचिश और मोमबत्ती ढूँढा करते थे फिर सारा घर इकठा होके उस पिली हलकी रौशनी में खाना खाया करते थे फिर फुर्सत के लम्हे पकड़ अन्ताक्छारी खेला करते थे वो अपने पन के दिन उफ़ ये बारिश के दिन न वो सोंधी खुशबु है न माँ का साथ न डर में पकड़ने को बहन का हाथ बरखा में भीगने का समय भी अब कहाँ है सब कुछ तो है यहाँ पर वो सुख कहाँ है फुर्सत के पल भी नहीं,बूंदों को पकड़ने कि तम्मना भी नहीं फिर भी है आज बारिश के दिन Rachana Srivastava