निज़ामाबाद. दो अक्तूबर महात्मा गाँधी एवम लालबहादुर शास्त्री जी क़ी जयंती के अवसर पर"इंदूर हिंदी समिति,.निज़ामाबाद" एवम समाचार पोर्टल"आप क़ी न्यूज -आप क़ी खबर" के सयुंक्त तत्वावधान में स्थानीय राजस्थान भवन में "हिंदी पत्रकारिता एवम उसकी चुनौतियां "विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया.जिसमे बोलते हुए स्थानीय हिंदी दैनिक "स्वतंत्र वार्ता"के सथानीय संपादक प्रदीप श्रीवास्तव का कहना था कि हिंदी पत्रकारिता के सामने कई चुनौतियों का पुलिंदा आज भी है .सही मायने में देखा जाए तो इसके लिये भी हम ही जिम्मेदार हैं.अगर दस-पंद्रह साल पीछे चलें तो देखेंगे कि साप्ताहिक हिंदुस्तान,धर्मयुग,दिनमान,रविवार जैसी हिंदी क़ी लोकप्रिय पत्रिकाएं बाज़ार में थीं.लेकिन लोकप्रियता व प्रसार होने के बावजूद वे बंद हो गई,क्यों?वहीँ खबर है कि हिंदुस्तान टाइम्स समूह का अख़बार दैनिक हिंदुस्तान अपना चंडीगढ़ संस्करण बंद करने कि योजना बना रहा है.आज भी बहुत सी पत्र-पत्रिकाएं हिंदी की निकल रहीं हैं ,लेकिन उनका भविष्य क्या है?दक्षिण भारत की ही बात करें तो आप देखेंगे कि दक्षिण से हिंदी की दो-चार अखबार ही निकलते हैं.जिनकी स्थिति ठीक नहीं है.यह बात नहीं है कि हिंदी के पाठक नहीं है,या विज्ञापन नहीं मिलता.सब कुछ होने के बावजूद हिंदी के अखबारों पर ध्यान नहीं दिया जाता है.अगर चुनौती कि बात करे तो हिंदी अखबारों के सामने सबसे बड़ी चुनौती है अनुवाद क़ी ,वाक्य संरचना क़ी,भावार्थ क़ी.अनुवाद की बात करें तो में यही कहूँगा कि बहुत बुरा हाल है.आप कहाँ कुछ चाहतें हैं और उसका अनुवाद कुछ हो जाता है.अगर शुद्ध हिंदी का प्रयोग करते हैं तो पाठक कहता है कि किलिस्ट हिंदी न पढ़ायें .फिर दक्षिण में उर्दू व मारवाड़ी मिश्रित हिंदी होती है.उन्हों ने आगे कहा कि आज तकनीकि में काफी बदलाव आया है,जिसके चलते लोगों को देश दुनिया कि खबरें पाल भर में घर बैठे मिल जाती हैं.इसके बावजूद कई चुनौतियां हिंदी पत्रकारिता के सामने अभी भी हैं.उस्मानिया विश्व विधालय के पूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ किसोरी लाल व्यास ने आंध्र प्रदेश सरकार से मांग कि की उर्दू पत्रकार शोएबुल्लाह खान के नाम पर एक पुरुष्कार की घोषणा करे. उनहोने कहा कि बीस अप्रेल 1948 को हैदराबाद के युवा पत्रकार जो इमरोज नामक अखबार का संपादक भी थे,को किस तरह निजामों के रजाकारों ने सरे शाम उस समय मौत के घाट उतर दिया था जब वह अपना प्रेस बंद कर घर लौट रहे थे.उनकी गलती शायद यह थी कि वे निजाम कासिम रिज़वी व उनके रजाकारों कर खिलाफ निर्भीक हो कर अपने अखबार "इमरोज" में लिखा करते थे ,तथा गाँधी भक्त थे.उन्हों ने भी इस बात को स्वीकारा कि हिंदी पत्रकारिता के सामने कई चुनौतियां अभी भी है. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि भविष्य निधि कार्यालय के आयुक्त मोहमद एच. वारसी ने कहा कि हिंदी व हिंदी पत्रकारिता के सन्दर्भ में मुझे दक्षिण में लोग अधिक दिखाई दे रहे हैं.यह हिंदी भाषा व हिंदी भाषियों के लिये गर्व कि बात है.इस मौके पर सर्व श्री राजीव दुआ ,राज कुमार सूबेदार ,घनश्याम पण्डे ,पावन पण्डे,बाबुराव ,महावीर जैन,गन्नू कृष्णा मूर्ति .श्रीमती ज्योत्सना शर्मा,संजीता मुंदरा,आदि ने भी संबोधित किया. इस अवसर पर डॉ.किशोरी लाल व्यास ,डॉ ओ.एम शेख ,संतोष कुमार एवं श्रीमती संतोष कौर को वर्ष 2010 के लिय इंदूर हिंदी सम्मान से सम्मानित भी किया गया.जिन्हें शाल,श्रीफल स्मृति चिन्ह एवम सम्मान पत्र प्रदान किया गया.उल्लेखनीय है कि यह सम्मान हर वर्ष पॉँच हिंदी सेवियों को हिंदी में किये गए उल्लेखनीय कार्य के लिये प्रदान किया जायेगा.इस मोके पर हिंदूर हिंदी समिति द्वारा पर्यावरण पर लिखी डॉ.किशोरी लाल व्यास कि पुस्तक "जंगलों को गाने दो"का विमोचन प्रदीप श्रीवास्तव ने किया.

चित्र परिचय :
इंदूर-१ संगोष्ठी को संबोधित करते हुए स्वतंत्र वार्ता के स्थानीय संपादक प्रदीप श्रीवास्तव ,साथ में दिखाई दे रहे हैं सर्व श्री राज कुमार सूबेदार,डॉ किशोरी लाल व्यास , मोहमद एच. वारसी,राजीव दुआ एवम घनश्याम पण्डे.
इंदूर-२ कार्य क्रम में उपस्थित हिंदी प्रेमी.

 

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