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पुस्तक का नाम --- ’ तृषा ’

कहानी संग्रह -- “ तृषा “
कहानीकार --- डा० श्रीमती तारा सिंह , नवी मुम्बई
समीक्षक --- श्री विजय सिंह बलवान, जटपुरा (जहांगीराबाद ) ,बुलंदशहर ( उ ० प्र ० )

डा० श्रीमती तारा सिंह की कृति ’ तृषा ’के आवरण-पृष्ठ पर रंगीन चित्र मनमोहक व आकर्षक है । सुंदर कागज और स्पष्ट मुद्रण से कृति में चार चाँद लग गये हैं । डा० तारा सिंह की कृति ’तृषा’ बेहद उत्कृष्ट कहानी- संग्रह है । इसमें २६ लघु एवं उत्कृष्ट कहानियों को संग्रहीत किया गया है । इसकी सभी कहानियाँ स्तरीय, पठनीय, प्रेरणाप्रद, शिक्षाप्रद एवं सारगर्भित हैं । प्रत्येक कहानी अपने में अलग व अद्भुत है । इसकी कहानियों में समाज और व्यक्ति से जुड़ी प्रवृतियों और समस्याओं का समावेश किया गया है । कथाकार डा० तारा सिंह , कहानी लिखने में माहिर हैं तभी तो पाठकों द्वारा इनकी कहानियों का स्वागत होता है । रचनाकार ने अपने भावों को कहानियों में अभिव्यक्त करने का सफ़ल और सार्थक प्रयास किया है । डा० तारा सिंह की प्रत्येक कहानी, कहानी की कसौटी पर खरी उतरती है । ’तृषा’ की कोई भी कहानी ऐसी नहीं, जो समाज में अपरिचित, अप्रत्यासित व अनपेक्षित हो । सभी कहानियाँ, नवागत को आधुनिक युग के बदलते-बिखरते रिश्तों का दर्पण दिखाने में सक्षम है । वास्तव में ही ’तृषा’ वर्तमान काल की मनोवृति का सच्चा दर्पण है । इसी कारण ,इसका नाम ’ तृषा ’ देना सार्थक है । आज हमारे समाज के भाव भाव बदल गये हैं ।
आज हिन्दू संस्कृति पर पश्चिमी सभ्यता हावी हो रही है । इसी के परिणाम स्वरूप कथानकों की मानसिकता पर वर्तमान का प्रभाव पड़ने लगा है । इससे हमारी सोच समाज को घायल कर रही है । व्यक्तिगत सुख-दुख एवं मानसिक ऊहाहोह के नवीन बोध को धरातल पर उतारने के साथ-साथ जग-जीवन से भी नवीन सम्बन्ध स्थापित करने की महत्वाकांक्षा आपकी कहानियों में परिलक्षित होती है । आपने आपनी कहानियों में माता- पिता की सेवा, राष्ट्र की सुरक्षा व धर्म को सर्वोपरि स्थान देकर पाठकों को प्रेरणा प्रदान करने का सार्थक प्रयास किया है जिसमें कथाकार पूर्णतया सफ़ल रहा है । आपने वाह्य जगत और अंतर जगत पर भी अपना दृष्टिपात किया है । आपकी कहानियों में दलितों का महत्व , प्रकृति वर्णन, शून्य में अनन्त का दर्शन होता है । आपकी कृति ’ तृषा ’ उत्कृष्ट, स्तरीय, पठनीय, सराहनीय एवं संग्रहणीय है । इसका पाठकों द्वारा सर्वत्र स्वागत किया जायगा, ऐसा मेरा विश्वास है । आपका अथक परिश्रम , सार्थक और सफ़ल है । उत्कृष्ट कृति ’ तृषा ’ के सृजन हेतु मैं आपको कोटि-कोटि साधुवाद करता हूँ व परमेश्वर से आपके दीर्घार्यु होने की प्रार्थना करता हूँ । मुझे विश्वास है कि आप भविष्य में भी उत्कृष्ट साहित्य का सृजन करके हिन्दी साहित्य को समृद्ध करने में अपना योगदान करती रहेंगी ।

- - - - - - - - - - - विजय सिंह बलवान , बुलंदशहर

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