डा० श्रीमती तारा सिंह के अनेक काव्य संग्रहों को पढ़ने और उन पर अपने विचार
व्यक्त करने का अवसर मुझे मिला है । उनकी लेखनी से निकट का परिचय भी है । अब यह
कहानी संग्रह ’तृषा’ देखकर उनकी विविधता के दर्शन हुए । समय के अभाव में कहानियों
के भीतर तक पहुँचने में कुछ विलम्ब हुआ । २६ कहानियों में डा० तारा सिंह ने, समाज
के प्रत्येक क्षेत्र को स्पर्श किया है । इसमें नारी शिक्षा, माता-पिता के प्रति
सन्तान का कर्तव्य, राष्ट्रीय सुरक्षा का दायित्व, पश्चिम के अन्धानुकरण के प्रति
अप्रत्यक्ष आक्रोश, सांस्कृतिक विरासत के लिए दो सभ्यताओं में होने वाले टकराव और
सामाजिक दायित्व के प्रति होने वाली विमुखता के स्पष्ट उल्लेख पढ़े जा सकते हैं ।
’नारी शिक्षा’ से प्रारम्भ कहानी संग्रह में, ’कैसी श्रद्धांजलि, कैसा प्यार’ में
अपने उद्देश्यों के प्रति अग्रसर हैं । झूठ बोलने के लिए दिये गये तर्क के प्रति
कथाकार ने प्रश्न खड़ा किया है । ’बेटे की पत्नी’ कहानी के द्वारा आज की पारिवारिक
स्थितियों का स्पष्ट उल्लेख पढ़ा जा सकता है । ’ मैं ,पिताजी और आलम’ में वात्सल्य
और स्नेह का दर्शन किया जा सकता है । ’आम के पेड़ में बबूल’ पारिवारिक घटनाओं का
रोचक कथ्य है । ’क्षमा बड़ेन को चाहिये’ में अनादिकाल के सूक्त कथन का विवेचन है और
तर्कमय भाषा में क्षमा की अवधारणा को स्पष्ट किया गया है । पात्रों की पारस्परिक
भाषा कथा को रूचिकर बना रही है ।“काश आदमी भी कुत्ता जैसा होता”शीर्षक को और
सुव्यवस्थित किया जा सकता था । वास्तव में कभी-कभी अभिधात्मक शीर्षक पाठक को कचोटने
लगते हैं । सार्थक कहानी होते हुए भी शीर्षक की दृष्टि से मध्यम स्तर पर आँकी जा
सकती है ।
“संतोष धन” कहानी अत्यन्त प्रेरणा दायक और रोचक बन पड़ी है । “सब धन भूरि समान” से
संतोष जनक समापन है । ’कंजूस सेठ छेदीलाल कर्ण’ की कहानी, कई मायने व्यक्त करती है
। रोचकता से पूर्ण कहानी है । ’ चला तो बहुत, पहुँचा कहीं नहीं’ को हम इस प्रकार भी
कह सकते ,’चलते-चलते थक गये, सफ़र अढ़ाई कोस’ कथानक अपने उद्देश्यों को समझा सकता है
। ’रात गही, याद रही’ में भाषाई उलझनों में स्वयं को ढ़ालने की सार्थक कला के दर्शन
किये जा सकते हैं । ’ भोला भाला बने रहो’ में शाब्दिक
अर्थावलियों का सुंदर और व्याख्यात्मक विश्लेषण है । ’भोला और भाला’ का भावनात्मक
सम्बोधन ठीक है । ’बेटी’ कहानी में आज के समाज की मानसिकता के स्पष्ट दर्शन हैं ।
’बिन पैसे सब सून’ में आर्थिक पक्ष के समर्थन में नए मुहावरे का प्रयोग किया गया है
। ’बिन पानी सब सून’ का अच्छा और सरल विश्लेषण है । ’यादें’ और”बैलगाड़ी का पहिया’
भी रोचक कहानियाँ हैं ।
’वो औरत’ कहानी ,आधुनिक समाज की बेरूखी,सन्तानों का दुर्व्यवहार और ममता की निर्मम
पराकाष्ठा का नमूना प्रस्तुत करती है । ’दद्दू का ठेलागाड़ी’ कहानी में गरीबन बाई का
संबोधन रोचक बन पड़ा है । गाँव के मुखिया के प्रति बालक की उत्सुकता और दद्दू का
बच्चे को उत्तर , कहानी का सार बन गया है । ’पानी ने बेपानी किया’ और ’कर्म ही जीवन
है’, दोनों ही कहानियों में भाग्य की विडम्बनाओं का सरल वर्णन है । ’भगवान अमीरों
का ही क्यों’ में मनुष्य के मानसिक अन्तर्द्वन्द्वों का लेखा-जोखा है । ’सुखनी” में
रामलखिया की बेटी और उसके दुखों की कहानी है । वर्तमान की परिस्थितियों की स्पष्ट
छाया इसमें मौजूद है । और अन्तिम कहानी ,’ परम्परा’ में समाज की अधकचरी सोच और
अन्धविश्वासों का चित्रण सरल भाषा में किया गया है । पूरे कथा संग्रह ,’तृषा’ में
एक न बुझने वाली प्यास के दर्शन होते हैं । डा० तारा सिंह की लेखनी का यह सुकोमल
प्रथम पुष्प है । इसके उपवन बनने की अपेक्षाएँ हैं । पुस्तक का आवरण और छपाई,
आकर्षक एवं निर्दोष हैं । मूल्य भी मात्र ६०/-रुपये है ।
समीक्षा पुस्तक —’तृषा’ समीक्षक
रचनाकार- डा० श्रीमती तारा सिंह श्री कृष्ण मित्र
मूल्य— ६०/- रुपये मात्र वरिष्ठ कवि एवं पत्रकार
प्रकाशक- मीनाक्षी प्रकाशन,शकरपुर १०२,राकेश मार्ग,गाजियाबाद
३२/२बी,गली नं०-२,दिल्ली-९२
प्राप्ति स्थान- १५०२(१५वाँ तला) सी क्वीन हेरिटेज़,पाम बीच रोड,