असमीया साहित्य की गौरा पंत शिवानी
अनुराधा शर्मा पुजारीः एक परिचय और उनका रचना संसार
असम के साहित्य जगत मे एक साहित्यकार के ऱुप मे और पत्रकारिता-जगत मे एक पत्रकार के
ऱुप मे अनुराधा शर्मा पुजारी किसी परिचय की मुहताज नही है। आपने कहानियाँ, उपन्यास
सहित जो कुछ भी लिखा है वह कालजयी रचनायें हैं। असमीया समाचार पत्रों मे असमीया
प्रतिदिन प्रकाशन गोष्ठी के द्वारा ‘सादिन’ नामक एक साप्ताहिक प्रकाशित किया जाता
है जिसे असम का ब्लिड्ज कहा जा सकता है। अनुराधाजी उसी ‘सादिन’ की संपादिका हैं।
अतः पत्रकार के रुप मे अनुराधा शर्मा पुजारी की क्या हस्ती है उसका सहज ही मे
अनुमान लगाया जा सकता है। क्योंकि सादिन की सूर्खियां हर पाठक को आकर्षित करती है।
एक ऑनलाइन साक्षात्कार मे अनुराधा शर्मा पुजारी ने अपने जीवन से जुङे कुछ ऐसे
तथ्यों पर प्रकाश डाला है जिनके बारे मे उन्होने आज तक कहीं ब्यक्त नहीं किया। इस
साक्षात्कार मे अनुराधाजी द्वारा ब्यक्त विचारों के अनुसार आपका लेखक बनने का कोई
लक्ष्य तो नहीं था लेकिन अपने आपको ब्यक्त करने की ललक दिलो-दिमाग पर हमेशा बनी
रहती थी। अपने परिवार मे घटित एक विशेष घटना के कारण दो दो भाइयों के होते हुए भी
अनुराधाजी को अपना बचपन अकेले ही बिताना पङा। आपकी उम्र सिर्फ 8 माह की थी तो आपके
पिताश्री एक दुर्घटना मे गंभीर रुप से घायल हो गये। उनको चिकित्सा के लिए पहले
कलकत्ता और फिर हॉगकांग ले जाया गया। चिकित्सा विशेषज्ञों द्वारा इलाज के चलते वे
ठीक तो हो गये लेकिन वे अपनी यादास्त खो बैठे। हॉगकांग मे चिकित्साधीन पिता के साथ
उनकी मां भी थी। दो भाइयों को होस्टल मे डाल दिया गया था। अतः आप अपनी दादी मां के
साथ अकेले काफी लंबे अरसे तक रही। साक्षात्कार मे अपने बचपन का स्मरण करते हुए आप
बतलाती हैं कि साहित्य रचना संसार मे प्रवेश करने के पूर्व आपका झुकाव पेन्टिग की
ओर था। इसके अलावा आपका स्वप्न था एक गायिका बनने का। आपके बङे भाई तबला बजाते और
वे गाया करती थी।
अपने घर की लाइब्रेरी मे रखी पुस्तकें पढने के साथ साथ उन पर टिक्का-टिप्पणी करना,
खास खास वाक्यों को रेखांकित करना और लेखक के विचारों से असहमत होना अनुराधाजी की
आदत सी बन गई थी। इस आदत के चलते आप जो भी पुस्तक पढती उस पूरी किताब मे स्याही से
लिखे तरह तरह के निशान ही निशान लग जाते। आपकी इस आदत के कारण आपके पिताश्री ने
गुस्से मे आकर उन्हे किताबें पढने से मना कर दिया और सारी किताबों पर ताला लगाने तक
की धमकी दे डाली। इससे आपके अंदर की सार्थक अध्ययनशीलता का परिचय मिलता है। इस
अध्ययनशीलता के कारण ही आपकी कहानियां और उपन्यास आदि चरित्रधर्मी रचनाएँ पढ कर
लगता है जैसे आप जो भी पात्र चुनती हैं वह उनके आसपास ही कहीं होता है और उस पात्र
मे पूरी तरह स्वयं समाहित हो कर ही उसका चित्रण करती हैं। आपकी एक कहानी है ‘एक
असामाजिक कवि’र बायोग्राफी’ (एक असामाजिक कवि की बायोग्राफी) । आत्मशैली और पात्रों
के कथोपकथन के मिश्रित माध्यम से कहानी को विस्तार देते हुए गीता नाम की एक
पतिविमुखा नारी चरित्र को लेखिका ने अपनी मामी के ऱूप मे पेश कर उसकी ब्यथा को जिस
रुप मे ब्यक्त किया है उसको पढ कर हर संवेदनशील पाठक को अनुराधाजी की सृजनशीलता का
कायल होना पङेगा। आपके उपन्यास और कहानियों के नारी पात्रों और हिंदी साहित्य की
विख्यात लेखिका ‘शिवानी’ के नारी पात्रों मे काफी कुछ समानता है। इस छोटे कलेवर के
आलेख मे इस समानता का विवेचन नहीं हो सकता। लेकिन दोनो लेखिकाओं के नारी पात्रों की
समानता पर अध्ययन जारी है। उचित समय और अवसर मिलने पर उसे प्रकाशित करने की कोशिश
की जायेगी। फिलहाल इस आलेख के अति विस्तार की आशंका को ध्यान मे रखते हुए यदि यह
कहा जाये कि अनुराधा शर्मा पुजारी असमीया साहित्य जगत की गौरा पंत शिवानी है तो
अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि जैसे शिवानी की रचनाओं मे नारी चरित्रों को प्रधानता
मिली है वैसे ही अनुराधा की रचनाओं मे भी नारी पात्र ही केन्द्र बिंदु पर विचरण
करते हैं।
अनुराधा शर्मा पुजारी का जन्म जोरहाट मे सन् 1964 मे हुआ था। जोरहाट मे शिक्षा
दिक्षा समाप्त करने के बाद आपने सोसोइलोजी मे एम.ए, किया। लेकिन अध्ययन के प्रति
अपने लगाव को आपने यहीं विराम नहीं दिया। एम.ए. करने का बाद आपने कलकत्ते मे ‘बिरला
इन्सीट्यूट ऑफ लिबरल आर्टस एण्ड मैनेजमेंट सांइस’ मे आपने पत्रकारिता का अध्ययन
किया। गुवाहाटी से प्रकाशित होने वाले एक साप्ताहिक मे अपने कलकत्ते प्रवास के
दौरान आप ‘कलकत्ते की चिठ्ठी’ के शीर्षक से नियमित कॉलम लिखती रहीं। इस कॉलम से
पत्रकारिता जगत मे आपको काफी लोकप्रियता मिली। ‘हृदय एक विज्ञापन’ आपका पहला
उपन्यास था जो लेखिका की बेबाक अभिब्यक्ति के कारण काफी चर्चित रहा। असम के
सर्वाधिक चर्चित और स्थापित पत्रकार और साहित्यकार श्री होमेन बरगोहाँई ने अनुराधा
की साहित्य प्रतिभा और उनके हृदय एक विज्ञापन नामक उपन्यास पर टिप्पणी करते हुए
लिखा है “अनुराधा शर्मा पुजारी को नई पीढी की एक सशक्त और प्रतिभाशाली लेखिका मानता
हूं। असम बाणी मे उनके स्थायी स्तंभ ‘कलिकता’र चिट्ठी’ पढ कर हर पाठक ने यह स्वीकार
किया है कि असम के साहित्याकाश मे एक जाज्वल्यमान सितारे का उदय हुआ है। हृदय एक
विज्ञापन उनका प्रथम उपन्यास है। इस प्रथम उपन्यास मे ही अनुराधा की भावी साहित्यिक
प्रतिभा की झलक मिल जाती है। इस उपन्यास के कथावस्तु के माध्यम से अनुराधा ने जीवन
के कुछ ऐसे मौलिक प्रश्नो और समस्याओं को उठाया है जिनको आज तक किसी साहित्यकार ने
नहीं उठाया”। मेट्रोपोलिटन नगरों की एडवर्टाइजिंग एजेंसियां विभिन्न कंपनियों के
उत्पादकों के विज्ञापन के लिए युवतियों और उच्च शिक्षा प्राप्त नव-विवाहिता महिलाओं
को ग्लेमर के सपने दिखला कर किस तरह उनका शोषण करते है उसकी एक वस्तुपरक स्थिति का
जायजा अनुराधा के ‘हृदय एक विज्ञापन’ नामक उपन्यास मे लिया गया है। एडवर्टाइजिंग
एजेंसियों मे एक बार प्रवेश करने के बाद किसी भी युवती अथवा महिला के लिए उससे बाहर
निकल पाना मुहाल हो जाता है। इन कंपनियों की ओर से एक टारगेट फिक्स कर दिया जाता
है। यदि कोई युवती अपना टारगेट पूरा नहीं कर पाती तो उसके लिए किसी भी तरह फिक्सड
टारगेट पूरा करने का सख्त फरमान जारी कर उसे मजबूर कर दिया जाता है।
इस उपन्यास की एक पात्र गीता वसु नाम की एक युवती उपन्यास के कथ्य और शिल्प को आगे
बढाने वाली मूल नायिका भास्वती को अपने टारगेट को पूरा करने मे मदद की जो गुहार
लगाती है उसको पढकर यह अहसास हो जाता है कि लेखिका को उपन्यास लिखने के मकसद मे
कामयाबी मिल गई। उस अंश विशेष पर नजर डालने की कोशिश करते हैं ........
“ भास्वती के घर के फोन की घंटी एक रात ग्यारह बजे बजती है। उसका पति प्रयाग रिसिवर
उठाने के बाद भास्वती को बतलाता है.... तुम्हारा फोन है। भास्वती हैरान हो जाती है
क्योंकि इतनी रात गये उसे फोन करने की हिम्मत आज तक किसी ने नहीं की और वह भी उसके
पति की उपस्थिति मे। उधर से आवाज आती है …..“ दीदी मै गीता वसु बोल रही हूं। आज
मैने दिन मे आपको बतलाया ही था। दीदी, आपने यदि मुझे एक कलर विज्ञापन नहीं दिलवाया
तो मेरा बेङा गर्क हो जायेगा। भास्वती ने पूरे गुस्से मे आकर कहा- तुम्हारा दिमाग
खराब तो नहीं हो गया है। इतनी रात गये मुझे फोन करती हो। कहाँ से मिले तुम्हे मेरे
फोन नंबर। मै नही कर सकती तुम्हारी कोई मदद। प्लीज दीदी, लाइन न काटें । मेरी पूरी
बात सुन ले और फिर कोई निर्णय लें। दीदी, यदि मैने सेवेंटी परसेंट टारगेट पूरा नहीं
किया तो मेरा वेतन काट लिया जायेगा। आप ही बताइए मेरा घर परिवार कैसे चलेगा। दीदी
आप शायद नहीं जानती हमारे एडमैनेजर के आदेश के अनुसार किसी भी तरह हो हमे अपना
टारगेट पूरा करना ही होगा। वह वाणी से नही कहता लेकिन उसके आदेश का अर्थ यही है कि
‘go and sleep with the client and earn advt…..’ दीदी, मैने आज तक ऐसा कभी नहीं
किया। इसके लिए मैने क्या कुछ नहीं सहा। गंदे गंदे इशारे, अश्लील छेङ-छाङ आदि सब
कुछ तो बरदास्त करती आ रही हूं।....But I can’t sleep with somebody for earning an
advt…. ‘ A man should never earn his living, if he earns his life he’ll be
lovely…., सच तो यह है कि मै कोई जिंदगी नही जी रही। दीदी, जीविका चलाना मेरी
मजबूरी है।
इस तरह भास्वती के माध्यम से गीता वसु जैसी ही इन कम्पनियों के शोषण की शिकार कई
युवतियों के जीवन मे झांक कर इनकी मजबूरी का वस्तुपरक चित्रण करने मे लेखिका पूरी
तरह कामयाब हुई है। कहीं कहीं यौन चित्रण मे अतिरेक तो हुआ है लेकिन उपन्यास की
कथावस्तु और विषय प्रतिपादन की दृष्टि से यह अस्वाभाविक नहीं लगता। पर इसके बावजूद
भी यदि यह कहा जाये कि अतिरेक यौन चित्रण से बचा जा सकता था तो शायद गलत नहीं होगा।
यह सिर्फ मेरा ही मानना नहीं है बल्कि जिस समय यह उपन्यास बाजार मे आया उस समय तो
कुछ जाने माने साहित्यकारों ने ‘हृदय एक विज्ञापन’ को एक अश्लील उपन्यास की संज्ञा
दी थी। उस समय इस उपन्यास को लेकर साहित्यकारों के बीच काफी बहस चलती रही लेकिन
अंततः इसको एक अच्छी साहित्यिक कृति के रुप मे मान्यता मिली। युवा पाठकों ने तो इसे
उसी समय अपना लिया था जिस समय यह ‘असम वाणी ’ के विशेष संस्करण मे प्रकाशित हुआ था।
एक पुस्तक के ऱुप मे बाजार मे आने के बाद तो इसके अब तक दस से भी ज्यादा संस्करण छप
चुके हैं। जरा देखें अनुराधा शर्मा पुजारी अपने ‘ हृदय एक विज्ञापन ‘ के बारे मे
क्या कहती हैः- “ साहित्य समालोचकों ने तो अंततः नई असमीया पीढी के लिए तो इसे
बाईबिल तक माना है। उस समय मुझे एक अभूतपूर्व आनंद की अनुभूति हुई थी। इस उपन्यास
के प्रकाशन के दो दशक बीत जाने पर आज भी पाठकों के पत्र आते रहते हैं। मै उनका जवाब
तो नही देती पर पूरा मन लगा कर पढती हूं और बङे यत्नपूर्वक संजोकर भी रखती हूं।
नगांव के एक कार्यालय मे कार्य़रत एक युवती ने तो यहां तक लिखा कि अपने ऑफिस मे मै
जब निराशा से घिर जाती हूं इस उपन्यास को लेकर पढने बैठ जाती हूं। स्व. पद्म
बरकोटोकी ने तो य़हां तक लिखा है कि इतनी कम उम्र मे जीवन को इतनी नजदीकी से देख कर
एक प्रभावशाली और कालजयी रचना लिखना एक असाधारण प्रयास है ”।
‘ हृदय एक विज्ञापन ‘ के बाद तो अनुराधा शर्मा पुजारी ने पीछे मुङ कर नहीं देखा और
तब से आज तक अपने रचना संसार को विस्तार देती आ रही हैं। ‘ सादिन ‘ जैसे बहु
प्रसारित और लोकप्रिय असमीया साप्ताहिक के संपादन की ब्यस्तता के बीच भी अपने
स्वाधीन लेखन को आप शायद ही कभी विराम देती हो। हृदय एक विज्ञापन के अतिरिक्त मेरे
पास उपलब्ध जानकारी के अनुसार आपकी रचनाएं हैः-
उपन्यासः- एजन ईश्वरर संधानत, कांचन, साहेबपुरर बरसन (वर्षा), बोरगी नदीर घाट,
नाहोरोर निरिबिलि छा(छाया), राग अनुराग।
कहानी संकलनः- बसंतर गान, एजन असामाजिक कविर बायोग्राफी, केथिरीनार सैते एटा
दुपरिया।
अन्यान्यः- कलिकतार चिठ्ठी, डायरी, अमेरीकन सरायखानात संवाद वसंत अरू बंधु, नो
मेनस् लैंड, अलप चिंता अलप गद्य इत्यादि।
अनुराधा की जो पुस्तकें मेरे पास मौजूद है उनका ही उल्लेख किया गया है। इनके
अतिरिक्त और भी रचनाएं हो सकती है जिनके बारे मे मुझे जानकारी नहीं है। पर इतना
जरूर कहना चाहूंगा कि अब तक मैने अनुराधा के रचना संसार मे से जितना और जो कुछ पढा
है उसके अनुसार कम से कम मै तो अनुराधा शर्मा पुजारी को शिवानी के समकक्ष खङा पाता
हूं। असहमति का स्वागत है।