उत्तर आधुनिकता और साहित्य


आधुनिकता एक जीवन प्रणाली के समान समकालीन समय से जुड़कर मानवीय मूल्यों की उद्भावक बन गयी थी. एक इतिहास क्रम में नव जागरण और समकालीन विचार आधुनिक के प्रवाह से अस्तित्व में आए.बदले हुवे समय में समकालीन विचारधाराओं में नया चिंतन आरम्ब हुआ. किवेन्टन स्किन्नर ने मानव विज्ञान की महान अवधारणा की वापसी के सन्दर्भ में यह कहा है कि यह उत्तर आधुनिकता का युग है. यह उत्तर आधुनिकता फिल्म से लेकर फैशन तक, साहित्य से संस्कृति तक, कामशास्त्र से कॉमिक्स तक और विज्ञान से विज्ञापन तक हर वस्तु को प्रभावित कर रही है. दर्शन, समाज और मीडिया सब इसके दायरे में है. लियोतार की पुस्तक 'द पोस्ट माडर्न' में कहा गया कि अब बीसवीं शताब्दी के अंत में एक नया सृजनात्मक युग होगा. इसका आरम्भ सं १९६८ ई. में पैरिस के छात्रों के विद्रोह में मिलता है. जिसमें कहा गया कि युवकों को मिलने-जुलने की आज़ादी हो. मार्शल मेकलुहान कि पुस्तक 'द मीडियम इज द मैसेज' में व्यापक परिवर्तनों को अंकित किया गया और उत्तर आधुनिकता ने एक नई विचारधारा का रूप प्राप्त कर लिया. यह भी कहा गया कि आधुनिकता और उत्तरआधुनिकता में मूलभेद यही है कि आधुनिकता एक महान आख्यान को ठोस और इतिहास के दिशाहीन बहाव पर हावी करती है. वहीं उत्तर आधुनिकता लोक कथाओं, जातीय कहानियों और स्थानीय मुहावरों को महत्व देती है .उत्तर आधुनिकता संरचना को तोड़ने की कोशिश है. वह अविरचना है और उसमें विविधता है. आधुनिकता को दोबारा लिखना उत्तर आधुनिकता है और वह विज्ञान के माध्यम से मानवता को मुक्त कराने का प्रोजेक्ट है. यह कहा जा सकता है कि संरचना की जगह अविरचना उत्तर आधुनिकता में मुख्य है. वह केन्द्र से परिधि की ओर जाती है और साहित्य को नए विचार से जोड़ती है.

उत्तर आधुनिकता कि अभिव्यक्ति साहित्य में व्यापक रूप से हुई है. वास्तव में आज समाज में शक्ति और सत्ता के केन्द्र के बीच मोहभंग कि स्थिति है. आज का रचनाकार एक प्रकार के अलगाव के बीच यथार्थ की दुनिया की तलाश करता है और अपने आत्मनिर्वासन और आत्महत्या से संघर्ष करता है. वह दोस्तीव्स्की हो, काफ्का हो, या मक्सिम गोर्की हो, या रिम्बो हो. संसार की गति बहुत तेज़ है. अब कहीं नायक नहीं है सब जगह प्रतिनायक है. आधुनिक कलाकार का आत्मसंघर्ष ही उसके सृजन का आधार है. बीसवीं शताब्दी में विश्व इतिहास के एक युग का अंत सा हो गया है. इस दुनिया में मनुष्य अनेक रूपों में बँटा हुआ यातना भोग रहा है. उसकी व्यथा और सपनों का कई अंत नहीं है.

कवि ऐसा न हो जैसा मिशल पूको ने कहा है कि "सागर के किनारे रेत पर बनाए गए चेहरे कि भाँति मनुष्य का निशान मिट जाए, कोई महाप्रलय हो जाए और मनुष्य कि मृत्यु ही हो जाए. "इस मृत्यु की घोषणा 'द डेथ ऑफ़ मनी' पुस्तक में कर्टजमन ने की, जो सं १९९२ ई. में प्रकाशित है. साल बेला ने हर्जोग में लिखा "मानव होने का क्या अर्थ है, एक नगर में, एक शताब्दी में, एक परिवर्तन में, एक भीड़ में, जिसे विज्ञान ने एक वस्तु में बदल दिया है. आधुनिकता के अंत की घोषणा कर उत्तर आधुनिकता में व्यक्ति कि मृत्यु को इतने बार दोहराना गया है कि लगता है कि अब मनुष्य जीवित ही नहीं बचा है."

उत्तर आधुनिकता और साहित्य का यह जुड़ना सृजन को भविष्य का एक दर्शन दे रहा है. सब कुछ का अंत क्या यह सच है कि सब कुछ समाप्त होगा. उत्तर आधुनिकता किसी सवाल का जवाब नहीं देती खुद एक जवाब बन जाती है. फ्रांसिस पूकुयामा, उदार प्रजातंत्र,व्यक्तिगत स्वंत्रता और लोक स्वायत्ता को ही वह समीकरण मानता है जो मनुष्य को उसके संकट से उबार सकती है. आर्वेल ने लिखा था कि यदि तुम भविष्य की तस्वीर देखना चाहते हो तो कल्पना करो उस चेहरे की जिस पर जैक बूटों की छाप है. एलें राव्ब ग्रिए ने नए उपन्यास का विचार सामने रखते हुए कहा है कि सिवाय स्वयं के साहित्य का कोई विषय नहीं होता आल्विन टाफ्लर ने पॉवरशिफ्ट में कहा है कि अब संघर्ष पूँजीवाद के प्रजातंत्र और साम्यवादी सर्वसत्तावाद में नहीं है बल्कि उदार प्रजातंत्र और अंधयुग की मानसिकता में है जिसका रूप आतंकवाद है.

कहा जाता है की आधुनिकता का अंत हो गया है पर क्या वास्तव में आधुनिकता का अंत हो गया है या केवल उसका स्वरुप बदल गया है. जिस सूचना व्यवस्था, जनसंचार, समाज संस्कृति और अर्थव्यवस्था के परिवर्तन की बात की जाती है, वह आधुनिकता की प्रक्रिया से अलग नहीं है. आधुनिकता के अंत का अर्थ वह नहीं है की आधुनिकता खत्म हो गई है बल्कि अब कला साहित्य की समस्याएँ और चिंतन जो पहले कभी आधुनिकतावाद से सम्बन्ध थी अब नहीं रही है. उत्तर शब्द लगाने से आधुनिकता खत्म नहीं हो जाती. वर्तमान सभ्यता में जो परिवर्तन आ रहे है उनसे मरुस्थल फैलता जा रहा है. समकालीन समय में आधुनिकतावाद के अंत पर बहस करने की बजाय यह विचार करना आवश्यक है कि अब मनुष्य के सृजनात्मक विजन को बदलने में दर्शन की क्या भूमिका हो सकती है. अब नई भूमिकाओं और असीम संभावनाओं की तलाश करना आवश्यक है. भविष्य में कला और साहित्य पर मास मीडिया का जो असर होगा या हो रहा है उससे भी एक संकट खड़ा हो सकता है, जब साहित्य पड़े जाने की बजाय पुस्तकालयों और कलादीर्घाओं में बंध होकर रहा जाएगा.

टेक्नालाजी ने आज इतना कुछ बदल दिया है कि अब पहले जैसी स्थितियाँ नहीं रही है. तभी मार्शल मैक्लुहान ने कहा है कि"अब साहित्य को नए रूपों में विकसित होना होगा". जायनल ट्रीलिंग ने ५० साल पहले ही कहा था कि "यह पाठक का युग है" आल्विन टाफ्लर ने न्यू वेव में कहा है कि "हमारी जिंदगी में एक नई सभ्यता का उदय हो रहा है. एक मरती हुई दुनिया में हम जीवित रहने की कोशिश कर रहे है"

उत्तर आधुनिकता और साहित्य एक समकालीनता से जुड़े हैं. जो विज्ञान में घटित होता है पहले वह साहित्य में आ जाता है. मनुष्य रोबो हो सकता है पर रोबो मनुष्य नहीं हो सकता. किसी व्यक्ति का क्लोन बन सकता है पर क्लोन व्यक्ति नहीं होता. जब तक मनुष्य रहेगा, साहित्य की प्रासंगिकता हमेशा रहेगी. आधुनिकता हो या उत्तर आधुनिकता साहित्य नए रूप में भी साहित्य है जिसमें समकालीन मनुष्य नई संभावनाओं के साथ व्यक्त्त हुआ है. उत्तर आधुनिकता एक विचारधारा है किन्तु साहित्य एक मानवीय सृजन है. मानवीय सृजन से किसी भी विचारधारा का कोई विरोध नहीं होता. समकालीन परिदृश्य में उत्तर आधुनिकता ने साहित्य के नए सृजनात्मक रूप की संभावनाओं की तलाश की है.

जी. रिज़वाना बेगम
पीएच.डी शोधार्थी
उच्चा शिक्षा और शोध संस्थान
दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा,मद्रास

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