बैठे
न
कभी
पास
हम
,दूर-दूर
ही
रहे
दिल
के
करीब
रहकर
भी,हम
दूर
ही
रहे
न
खुद
के
हो
सके,
न
जमाने
के
ही
निभाते
दुनिया
का
हम
दस्तूर
ही
रहे
फ़ासले
दरम्यां
जमीं
-
आसमां
हुये
मगर
अपनी
जगह
हम
मगरूर
ही
रहे
कभी
मंदिर
,कभी
मस्जिद
,कहाँ-कहाँ
न
फ़िरे
,फ़िर
भी
घर
से
हम
दूर
ही
रहे
न
जिंदगी
मिली
,
न
मौत
ही
आयी
बन
कर
खाक,
उड़ते
हम
जरूर
ही
रहे