हजारों ख्वाब आँखों में हमारी मुस्कुराये हैं–सीमा गुप्ता


तेरे मिलने की बेताबी ने क्या क्या गुल खिलाये हैं
तसव्वुर ने तेरे फिर रात भर मुझको जगाया है
तेरी चाहत ने मेरी नींद पर पहरे लगायें हैं ……
लबों पर प्यास रखी है मिलन की आस रखी है
वही यादों का दरया है वही ठंडी हवाएं हैं
ये मंज़र शाम ढलने का , ये भीगी रात का दामन
तेरी यादों ने ऐ जानम यहीं खेमे लगाये हैं
ये तन्हाई , ये खामोशी , ये ‘सीमा’ हिज्र के लम्हे
रुपहली चांदनी रातों में , हम खुद को जलाएं हैं

HTML Comment Box is loading comments...
 

Free Web Hosting