"किस्मत का उपहास" 
 

हर बीता पल इतीहास रहा,
जीना तुझ बिन बनवास रहा
 
ये चाँद सितारे चमके जब जब 
इनमे तेरा ही आभास रहा

चंचल हुई जब जब अभिलाषा,
 
तब प्रेम प्रीत का उल्लास रहा,
 
तेरी खातिर कण कण पुजा 
 
पत्थरों में भगवन का वास रहा 

विरह के नगमे गूंजे कभी
कभी सन्नाटो का साथ रहा
 
गुजरे दिन आये याद बहुत
 
"किस्मत" का कैसा उपहास रहा.
 

 
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