मैं दोषी हूँ ये तो मैंने मान लिया पर झूठा है जो तुमने इल्ज़ाम दिया तुमको खुश कर पाना तो नामुम्किन है ये भी क्या कम है तुमको पहचान लिया हर प्राणी की अपनी-अपनी सीमा है नहीं गिला, न तुमने मुझसे प्यार किया कर पाओ तो माफ़ मुझे तुम कर देना करम तुम्हारा है कुछ पल तो साथ दिया ख़लिश विदा की बेला है, अब चलते हैं याद रहेगा वो प्याला जो आज पिया. महेश चन्द्र गुप्त ’ख़लिश’ ८ दिसंबर २००९
HTML Comment Box is loading comments...