साँझ हुई , वे घर न आये—— डा० श्रीमती तारा सिंह


साँझ हुई , वे घर न आये
अब तक कोई खबर न आये
चौकठ खड़ी मैं राह निहारूँ
चाँद अभी तक नजर न आये
बदरा रे तू उनसे जा कहना
बरस बीते, क्यों इधर न आये
यार मेरा मुझसे रुसवा हुआ है
प्यार का उनको कदर न आये
आहों के शोले उठ रहे जां से
कण भर भी राख नजर न आये

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