शमशान-सा जल रहा है मेरा गाँव।
रेगिस्तान-सा ढल रहा है मेरा गाँव।।
फूटी कौड़ी लेकर दुनियाँ के मेले में।
अनजान-सा चल रहा हैं मेरा गाँव।
चाँद तारों-सी चिमनियों की रोशनी में
आसमान-सा फल रहा है मेरा गाँव
जब से फँसा साहूकार के चक्कर में
मेहमान-सा पल रहा है मेरा गाँव।
अंधाधुंध बढ़ रहा है शहरीकरण।
बनियान-सा गल रहा है मेरा गाँव
भेड़ियों की तादाद बढ़ रही है ‘शिवा’
खलियान-सा खल रहा है मेरा गाँव।




‘‘सौरम घर’’
68, तिलक नगर, झालावाड़
(राज.) 326001
 

 
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