गीत - अभिलाषा
बन दीपक मैं ज्योति जगाऊँ
अंधेरों को दूर भगाऊँ,
दे दो दाता मुझको शक्ति
शैतानों को मार गिराऊँ ।
बन पराग कण फूल खिलाऊँ
सबके जीवन को महकाऊँ,
दे दो दाता मुझको भक्ति
तेरे नाम का रस बरसाऊँ ।
बन मुस्कान हंसी सजाऊँ
सबके अधरों पर बस जाऊँ,
दे दो दाता मुझको करुणा
पाषाण हृदय मैं पिघलाऊँ ।
बन कंपन मैं उर धड़काऊँ
जीवन सबका मधुर बनाऊँ,
दे दो दाता मुझको प्रीति
जग में अपनापन बिखराऊँ ।
बन चेतन मैं जड़ता मिटाऊँ
मानव मन मैं मृदुल बनाऊँ,
दे दो दाता मुझको दीप्ति
जगमग जगमग जग हर्षाऊँ ।
कवि कुलवंत सिंह