जो भी अपनी सुनाने व्यथायें

दूर से चलके मंदिर में आयें

दीजिये माता आशीष उनको

मन में जो गहरी आशा लगायें

दीन भक्तो को बस आसरा है
, कृपा की जगत जननी तुम्हारी

 

गाँव शहरों में गलियों सड़क में

उमड़ी है हर जगह भीड़ भारी

करके दर्शन व्यथायें सुनाने

आरती पूजा करने तुम्हारी

मन के भावों को पावन बनाता
, पर्व नवरात्र का पुण्यकारी

भजन की स्वर लहरियो से गुंजित

हो रहा प्यारा निर्मल गगन है

होम के धूम की गंध से भर

हर पुजारी का मन मगन है

माँ
! दो वर जिससे हो हित सबों का , मान के प्रार्थनायें हमारी

जिनके मन में बसा है अंधेरा

माँ
! वहाँ ज्ञान का हो उजाला

जो भी हैं द्वेष
, दुर्भाव , कलुषित

उनका मन होवे सद्भाव वाला

किसी का न कोई अहित हो
, नष्ट हों दुष्ट , सब दुराचारी

स्नेह की ज्योति से जगमगाये
,

देश का सुखद हर एक कोना

कृषि औ
" उद्योग की वृद्धि से हो

सारा वातावरण जगत का सलोना

सब सुखी हो
, विदग्ध सब निरोगी , विश्व हो माँ ! कल्याणकारी

 

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