माँ का बर्णन करना..–सुशील गुरु


माँ का बर्णन करना बहुत मुश्किल है. मेरी माँ मुझको बचपन में छोड़ गई. इसलिए उसके गीत लिख लेता हूँ, गा लेता हूँ. प्रस्तुत है –

 

 घर में ख़ुशी गुनगुनाती है अम्मा.

रूठों हुओं को मनाती है अम्मा.

कभी मास्टर तो कभी दोस्त बनकर,

सही राह चलना सिखाती है अम्मा.

ग़ज़ल का कभी एक मिश्रा सुनाओ,

दूजा मिश्रा फ़ौरन सुनाती है अम्मा.

तुम्हे प्रेम के ताप से सींचती है,

सपन टूटे न ऐसे जगाती है अम्मा.

 पल्लू में सबको सदा बांध करके,

ढले शाम लगता बुलाती है अम्मा.

उसकी आँखों मेने देखा है ‘गुरु’.

प्यार की मीठी नदिया बहती है अम्मा.

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