ओडिया कहानी
बलात्कृता
मूल ओडिया कहानी: सरोजिनी साहू
हिंदी अनुवाद: दिनेश कुमार माली
यह कहानीकार की सद्यतम प्रकाशित कहानियों में से है, जो न तो किसी दूसरी भाषा
में अनुदित हुई है, न किसी कहानी संग्रह में संकलित हुई है. यह कहानी 'टाईम्स ऑफ़
इंडिया ग्रुप' की ओडिया पत्रिका 'आमो समय' के जून , २००९ अंक में प्रकाशित हुई है.
कहानी का मूल शीर्षक 'धर्षिता' था , पर 'धर्षिता' शब्द हिंदी में न होने के कारण
मैंने उस कहानी का शीर्षक 'बलात्कृता' रखना उचित समझा. कहानीकार की सद्यतम कहानी का
प्रथम हिंदी अनुवाद पेश करते हुए मुझे अत्यंत हर्ष हो रहा है.
बलात्कृता
क्या सभी आकस्मिक घटनाएँ पूर्व निर्धारित होती है? अगर कोई आकस्मिक घटना घटती है तो
अचानक अपने आप यूँ ही घट जाती है; जिसका कार्यकरण से कोई सम्बन्ध है?
बहुत ही ज्यादा आस्तिक नहीं थी सुसी, न बहुत ज्यादा नास्तिक थी वह. कभी-कभी तो ऐसा
लगता था कि ये सब बातें मन को सांत्वना देने के लिए केवल कुछ मनगढ़ंत दार्शनिक
मुहावरें जैसे है.
सुबह से बहुत लोगों का ताँता लगने लगा था घर में. एक के बाद एक लोग पहुँच रहे थे या
तो कौतुहल-वश देखने के लिए या फिर अपनी सहानुभूति प्रकट करने के लिए. घर पूरी तरह
से अस्त-व्यस्त था. जीवन तो और भी अस्त-व्यस्त था! दस दिन हो गए थे, इधर-उधर
घुमने-फिरने में, आज ही ये लोग अपने घर लौटे थे. रास्ते भर यही सोच-सोचकर आ रहे थे,
घर पहुंचकर शांति से गहरी नींद में सो जायेंगे. रात के तीन बजे उनकी ट्रेन अपने
स्टेशन पर आनेवाली थी. इसलिए मोबाईल फ़ोन में 'अलार्म' सेट करने के बाद भी, आँखों
में नींद का नामोनिशान नहीं था. पलकें एक मिनट के लिए भी नहीं झपकी थी. थोडी-थोडी
देर बाद नींद टूट जाती थी. ट्रेन से उतरकर घर लौटकर देखा था, कि घर अब और कोई
आश्रय-स्थल नहीं रहा था.
सुबह से ही घर में लोग जुटने लगे थे. कभी-कभी तीन-चार मिलकर आ रहे थे तो कभी-कभी
कोई अकेला ही. सभी को शुरू से उस बात का वर्णन करना पड़ता था, कि यह घटना कैसे घटी
होगी.यहाँ तक कि डेमोंस्ट्रेशन करके भी दिखाना पड़ता था. सब कुछ देखने व सुन लेने
के बाद, वे लोग यही कहते थे कि आप लोगों को इतना बड़ा खतरा नहीं उठाना चाहिए था.
अगर कोई एक आदमी भी घर में रुक जाता तो, शायद आज यह घटना नहीं घटती . ऐसा प्रतीत
होता था जैसे कि अपराधी को हर हालत में अपराध करने का पूरा-पूरा हक़ है. और सुसी के
परिवार वालों की भूल है कि उन्होंने कोई सावधानी नहीं बरती.
इन्हीं 'सावधानी' व 'सतर्कता' की बातें सुनने से सुसी को लगता था, कि बारिश के लिए
छतरी, सांप के लिए लाठी, अँधेरे के लिए टॉर्च का प्रयोग कर जैसे उसकी सारी जिंदगी
बीत जायेगी! ऐसा कभी होता है क्या? चारों-दिशायें, चारों-कोनें, ऊपर-नीचे देख-देखकर
साबुत जिन्दगी जीना संभव है?
:" आप इंश्योरेंस करवाए थे क्या?"
:" इंश्योरेंस, नहीं, नहीं."
:" करवाना चाहिए था ना!"
सुसी और क्या जबाव देती?इस संसार में सब कुछ क्षणभंगुर और अस्थायी है. जो आज है,कल
वह नहीं रहेगा. किस-किस चीज का इंश्योरेंस करवाएगी वह? और किस-किस का नहीं ! घर,
गाड़ी, जीवन, आँखें, कान, नाक, ह्रदय, यकृत और वृक्क? इंश्योरेंस कर देने के बाद,
'पाने और खोने' का खेल बंद हो जायेगा? किसी भी रास्ते से तब भी आ पहुँचेगी दुःख और
यंत्रणा, तक्षक सांप की तरह!
:"कितना गया?"
:" क्या -क्या गया ? "
धीरे-धीरे, कुछ -कुछ याद कर पा रही थी सुसी . एक के बाद एक चीजें याद आ रही थी उसको
. क्या बोल पाती वह ? आते समय , जिस हालत में उसने अपने घर को देखा था बस उसी बात
को दुहरा रही थी सभी के सामने .
उस दिन जब उन्होंने अपने घर की खिड़की के टूटे हुए शीशे के छेद में झाँककर देखा ,
तो दिखाई पड़ी थी अन्धेरें आँगन में चांदनी की तरह फैली हुई रोशनी. आश्चर्य से सुसी
ने पूछा था ," अरे ! बेबी के कमरे की लाइट कैसे जल रही है ?" जब कभी वे लोग बाहर
जाते थे , तो घर की लाइट बंद करना और ताला लगाने का काम अजितेश का होता था . इसलिए
यह प्रश्न अजितेश के लिए था . " आप क्या बेबी के कमरे की लाइट बुझाना भूल गए थे ?"
गाडी से सूटकेस व अन्य सामान उतार रहा था अजितेश. कहने लगा था ," मैंने तो स्विच ऑफ
किया था ." बेबी बोली थी :-" पापा , आप भूल गए होगे . याद कीजिये जाते समय
लोड-शेडिंग हुआ था ना ? ."
ग्रिल का ताला खोल दी थी सुसी . इसके बाद वह मुख्य -द्वार का ताल खोलने लगी थी .
ताला खोलकर ,धक्का देने लगी थी .पर जितना भी धक्का दे पर दरवाजा नहीं खुल रहा था .
"अरे ! देखो , "चिल्लाकर बोली थी सुसी ,"पता नहीं क्यों ,दरवाजा नहीं खुल रहा है .
लगता है किसीने भीतर से बंद किया है ? कौन है अंदर ? " .सुसी का दिल धड़कने लगा था .
वह कांपने लगी थी . " दरवाजा क्यों नहीं खुल रहा है ? " भागकर आया था अजितेश , पीछे
-पीछे वह ड्राईवर भी . सुसी ग्रिल के दरवाजे के पास आकर ,टूटे शीशे से बने छेद में
से झाँककर देखने लगी वह दृश्य . बड़ा ही ह्रदय विदारक था वह दृश्य! उसकी अलमीरा
चित्त सोयी पड़ी थी. दोनों तरफ बाजू फैलाते हुए. खुले पड़े थे अलमीरा के दोनों पट.
सुसी की छाती धक्-धक् कांपने लगी थी जोर जोर से.रुआंसी होकर बोली थी,-"हे,देखो!"
:" ऐसा क्यों कर रही हो?" बौखलाकर अजितेश बोला था. इसके बाद उसने बड़े ही धैर्य के
साथ पडौसियों को जगाया था. ड्राईवर और पडौसियों को साथ लेकर पीछे वाले दरवाजे की
तरफ गया था अजितेश. पीछे का दरवाजा खुला था. पर किसीने बड़ी सावधानी के साथ, उस
दरवाजा को चौखट से सटा दिया था. दूर से ऐसा लग रहा था जैसे दरवाजा वास्तव में बंद
है.
ड्राईवर कहने लगा-"चलिए,सर! पुलिस स्टेशन चलेंगे." पडौसी सहानुभूति जता रहे थे. कह
रहे थे,-" दो-चार दिन पहले, आधी रात को, धड-धड की आवाजें आ रही थी आपके घर की तरफ
से. हम तो सोच रहे थे कि शायद कोई पेड़ काट रहा होगा."
अजितेश ड्राईवर को लेकर पुलिस स्टेशन जाते समय यह कहते हुए गया था-" किसी भी चीजों
को इधर-उधर मत करना. छूना भी मत. थाने में एफ.आई.आर देकर आ रहा हूँ." अजितेश के
जाने के बाद पडौसी भी आपस में चलो चलो कहते हुए अपने घर को लौट गये.
सुसी ने देखा था कि उसका पूरा घर बिखरा-बिखरा , अस्त-व्यस्त पडा था. जो चीज जहाँ
होनी चाहिए थी, वहां पर नहीं थी. किसी ने सभी तकियों को फर्श पर बिछा कर, उसके उपर
सुला दिया था उसकी अलमीरा को. पास में मूक-दर्शक बनकर खड़ी हुई थी बेबी की वह
अलमीरा. जमीन पर बिखरी हुई थी बाज़ार से खरीदी हुई इमिटेशन ज्वैलरी जैसे कान के
झुमके,बालियाँ और गले का हार.यहाँ तक कि, भगवान के पूजा-स्थल को भी किसी ने छेड़
दिया था.
सुसी ने सभी कमरों में जाकर देखा था. टीवी अपनी जगह पर ज्यों का त्यों था, कंप्यूटर
भी वैसे का वैसे ही पड़ा था. माइक्रो-ओवेन रसोई घर में झपकी लगाकर सोयी हुई थी. और
बाकी सभी वस्तुयें अपनी-अपनी जगह पर सुरक्षित थी. पर चोर ने नोकिया का पुराना
मोबाइल सेट और एक पुराने कैमरा को अनुपयोगी समझकर बेबी के बिस्तर में फेंक दिया था.
परन्तु जब सुसी ने बेड रूम के बाहर का पर्दा हटाकर देखा, तो वह आर्श्चय-चकित रह गयी
यह देखकर कि उस रूम का ताला ज्यों का त्यों लगा हुआ था.अरे! किसीने उस कक्षा को छुआ
तक नहीं, उसे ज्यों का त्यों अक्षत छोड़ दिया.
बेबी ने आवाज लगायी, "मम्मी, देखो,देखो."
"क्या हुआ," बेबी के कमरे में घुसते हुए सुसी ने पूछा.
"जिस चोर ने तुम्हारी अलमीरा को तोडा, उसने मेरी अलमीरा को क्यों नहीं तोडा?"
आस-पास ही थी दोनों अलमीरा, बेबी के कमरे में. एक सुसी की अलमीरा, तो दूसरी बेबी
की.बेबी की अलमीरा में बेबी की हरेक चीज तथा कपडा रखा जाता था. सुसी की अलमीरा में
लॉकर को छोड़ बची हुई जगह में साडी का इतना अधिक्य था कि और साडी रखने से उसे अपने
अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ता था.
देखते ही देखते सुबह हो गयी.ड्राईवर और अजितेश, पुलिस स्टेशन में थानेदार को न पाकर
, उसके घर चले गए थे.थानेदार की किडनी में स्टोन था. वह वेल्लोर से कुछ दिन हुए
लौटा था. "मैं सुबह नौ बजे से पहले नहीं आ पाउँगा " बड़े ही कटु आवाज में बोला था
थानेदार, " आप लोग जाइये, सब कुछ सजा कर रख दीजिये, मैं नौ बजे तक पहुँचता हूँ."
ड्राईवर की सहायता से नीचे मूर्छित पड़ी अलमीरा को उठाकर खडा किया था अजितेश ने. अब,
दोनों अलमीरा पास पास खड़ी हुई थीं.
ड्राईवर ने जाने की इजाज़त मांगी, " तो, मैं जा रहा हूँ ,सर." अजितेश को थानेदार के
ऊपर पहले से ही काफी असंतोष था, और ड्राईवर से कहने लगा,"ठीक है, तुम जाओ, और रूककर
करोगे भी क्या?" ड्राईवर रात दो बजे से प्रतीक्षा कर रहा था स्टेशन पर. अजितेश का
अनुमति पाते ही वह तुरंत रवाना हो गया. किस रस्ते से चोरी हुई होगी, छान-बीन करने
के लिए सुसी और अजितेश इधर-उधर देखने लगे. पता चला कि बाथरूम के रोशन दान में लगा
हुआ शीशा टूट कर नीचे गिरा हुआ था. चोर जरुर उसी इसी रास्ते से होकर अंदर घुसा
होगा, जिसका वह प्रमाण छोड़कर गया कोमोड़ के ऊपर रखा हुआ था फूलदान. आरी-पत्ती की
मदद से सब ताले टूटे हुए थे.
सूटकेस, एयर बैग, तब तक ड्राइंग रूम में रखा जा चुका था. इतनी देर तक हाथ-मुहं धोने
की भी फुरसत नहीं थी सुसी की. सवेरे-सवेरे टहलते हुए लोग बाहर चारदीवारी का दरवाजा
खोलकर घर के भीतर आ गये थे. पता नहीं, इतनी सुबह-सुबह इस घटना की जानकारी लोगों को
कैसे मिल गयी?
:" अरे,ये सब कैसे हो गया?"
:" आप लोग कहाँ गये थे?"
:" चार दिन पहले, मोर्निंग-वाक में जाते समय मैंने देखा था की आपके कमरे की एक लाइट
जल रही थी. मैंने सोचा कि आप लोग बंद करना भूल गये होंगे."
:" दस दिन के लिए बाहर गये थे? किसी को तो बताकर जाना चाहिए था."
:" आपको पता नहीं है, ये जो जगह है, यहाँ चोरों की भरमार है."
उस समय तक पूरा शरीर थक कर चूर-चूर हो चूका था. एक, उपर से लम्बी यात्रा की थकान;
दूसरी, रात भर की अनिद्रा. ऐसा लग रहा था मानो शरीर का पुर्जा-पुर्जा ढीला हो गया
हो. लेकिन लोगों का आना-जाना जारी था. जल्दी-जल्दी, घर साफ़ कर पहले जैसी साफ-सुथरी
अवस्था में लाने की कोशिश कर रही थी सुसी.
उसने हाथ घुमा कर भीतर से देखा था कि लॉकर के भीतर फूटी कौडी भी नहीं थी और लॉकर
बाहर से टूटकर टेढा हो गया था. सोना चांदी के गहने और अब कहाँ होंगे? घर
सजाते-सजाते, बाद में सुसी को यह भी पता चला कि पीतल का एक बड़ा शो-पीस, कांसे की
लक्ष्मी की मूर्ति, चांदी का कोणार्क-चक्र भी शो-केस में से गायब हैं.
यह सब देखकर बेबी को तो मानो रोना आ गया हो. अजितेश डांटते हुए बोला था," रो क्यों
रही हो? ऐसा क्या हो गया है?"
:" मम्मी, देख रही हो, मेरे कान के दो जोड़ी झूमके भी चोर ले गया. चोर मर क्यों नहीं
गया? मैं उसको, श्राप देती हूँ कि उसको सात जन्मो तक कोई खाना नहीं मिलेगा?"
:" चुप हो जा, पागल जैसे क्यों हो रही हो?"
सुसी डांटने लगी थी. बेबी को कान के झुमकों के लिए रोते देखकर सुसी को याद आने लगा
था अपने सारे गहनों के बारे में.
:" तुम्हारी सोने की एक चेन , मेरा मगल सूत्र, दो चूडियाँ इतना ही तो घर में था न?"
पूछने लगी थी सुसी बेबी से.
:"और मेरी अंगूठी?" पूछने लगी थी बेबी.
:" हाँ, हाँ, वह अंगूठी भी चली गयी."
:" पापा की गोल्डन पट्टे वाली घडी?"
:" ठीक बोल रही हो, वह भी."
:" और याद करो तो बेबी और किस-किस चीज की चोरी हुई होगी?"
:" आप के सोने का हार, उसको आपने कहाँ रखा था?"
:" इमिटेशन डिब्बे में ही तो था. क्रिस्टल के साथ गूँथकर रखा हुआ था." सुसी बेबी के
नकली गहनों के सब डिब्बे खोल-कर देखने लगी थी.
:" नहीं, नहीं, यहाँ तो कहीं भी नहीं है." बेबी कह रही थी.
:" एक और बात, अगर आपको पता चल जायेगा तो आपका मन बहुत दुखी हो जायेगा, इसलिए मैं
आपको नहीं बता रही हूँ."
सुसी की आँखों में आंसू देखने से जैसे उसको ख़ुशी मिलेगी, उसी लहजे में चिढाते हुए
बोली थी बेबी, " बोलूं?"
:" ज्यादा नाटक मत कर, गुस्सा मत दिला.बोल रही हूँ,ऐसे भी मुझे अच्छा नहीं लग रहा
है. तुम्हारे कह देने से और क्या ज्यादा हो जायेगा?"
:" वह बहुमूल्य पत्थरों से जडित चौकोर पेंडेंट, जो आपके बचपन की स्मृति थी, कहाँ
गया ? "
बेबी ठीक बोल रही थी,पुराना पेंडेंट चेन से कटकर बाहर निकल आ रहा था, इसीलिए चेन से
निकाल कर अलग से रख दी थी सुसी. क्या , किसी ज़माने की एक अनमोल धरोहर थी वह? जब वह
हाई-स्कूल में पढ़ती थी तब माँ उसके लिए बनवाई थी बहुमूल्य पत्थर जडित अंगूठी, कान
के झूमके तथा पेंडेंट के साथ एक सोने की चेन. अब तो माँ भी मर चुकी है., और वह
सोनार भी. उस समय तो वह सोनार जवान था. अगर उसको एक अच्छा शिल्पी कहें , तो कोई
अतिशयोक्ति नहीं होगी. नए-नए डिजाईन के चित्र बनाकर, नई-नई डिजाईन के गहनें गढ़ना
उसकी एक अजीज अभिरुचि हुआ करती थी. छोटे-छोटे छब्बीस नग, बीच में एक बड़ा सा सफ़ेद नग
लगा हुआ चौकोर आकार का था वह पेंडेंट. सबसे ज्यादा सुन्दर था वह. सभी बहनें बराबर
शिकायत करती रहती थीं उस सोनार ने उनके लिए इतनी सुन्दर डिजाईन क्यों नहीं बनाई?
कितनी सारी यादें जुडी हुई थी उस पेंडेंट से. इतने दिनों तक पेंडेंट था उसके साथ.
माँ ने अपनी बचत किये हुए पैसों से बनवाई थी उसको. उसकी याद आते ही माँ की बहुत याद
आने लगी थी. जब माँ जिन्दा थी, वह उसके महत्त्व को नहीं समझ पाई थी . अभी समझ में आ
रहा था कि किस प्रकार एक मध्यम-वर्गीय परिवार की माँ अपने जीवन में पैसा-पैसा
जोड़कर बच्चों के लिए बहुत कुछ कर ली थी. आखिर, उसे भी चोर ले गया ?
:" आप दुखी हो गयी हो क्या?माँ, मेरी भी तो चेन और कान की बालियाँ चोरी हो गयी है."
:" बेबी,तुम्हारी माँ तो अभी जिंदा है.तुम्हारे लिए फिर से बनवा देगी. पर, वह
पेंडेंट तो मेरे शरीर पर बहुत दिनों तक साथ-साथ था, इसलिए लगाव हो गया था, जैसे कि
शरीर का कोई अंग हो."
बेबी फिर एक बार किसी गवांर औरत की भांति चोर को गाली देना शुरू कर दी थी.
:"तू ज्यादा बक-बक मत कर, बहुत काम पडा हुआ है, उसमें मेरा हाथ बटा." कहते हुए बाहर
से लाये हुए सूटकेस को खोली थी सुसी.
एक घंटे के बाद अजितेश लौट कर आ गया था.साथ में पुलिस वाले और मटन कि थैली.ऐसे समय
में मटन देख कर सुसी का मन आश्चर्य और विरक्ति भाव से भर गयी थी. पुलिस के सामने
अजितेश को कुछ भी न बोलते हुए, चुपचाप मटन की थैली को भीतर रख दी थी सुसी.
बाथरूम के रोशनदान के पास जाकर थानेदार अनुमान लगाने लगा था कि एक फुट चौडे रास्ते
से तो केवल सात-आठ साल का लड़का ही पार हो सकता है. लेकिन आठ साल का लड़का
आरी-पत्ती से सब ताले कैसे खोल पायेगा? इतने बड़े अलमीरा को कैसे सुला पायेगा? ऐसी
बहुत सारी अनर्गल बकवास करने के बाद अजितेश, सुसी और बेबी का पूरा नाम, उम्र आदि
लिखकर वापस चला गया था. जाते समय यह कहते हुए गया था, अगर मेरी तक़दीर में लिखा
होगा, तो आपको आपका सामान वापस मिल जायेगा.
'थानेदार की तक़दीर?' पहले पहले तो कुछ भी समझ नहीं पाई थी सुसी.तभी अजितेश
झुंझलाकर बोला,-"पहले जाओ, गेट पर ताला लगाकर आओ, जल्दी-जल्दी खाना बनाओ ,फिर खाना
खाकर सोया जाय."
:" जल्दी-जल्दी कैसे खाना पकाऊंगी? क्या सोचकर अपने साथ मटन लेकर आ गए? लोग
देखेंगे, तो क्या कहेंगे> इधर तो इनके घर में चोरी हुई है, और उधर ये असभ्य लोग मटन
खाकर ख़ुशी मना रहे हैं."
:" लोगों का और कुछ काम नहीं है, जो तुम्हारे घर में क्या प़क रहा है देखने के लिए
आएंगे?"
तपाक से बेबी बोल उठी,:" पापा, मुझे आश्चर्य हो रहा है, आपको तनिक भी दुख नहीं
लगा?"
अजितेश सुलझे हुए शब्दों में कहने लगा,:"जो गया, सो गया. क्या इन चीजों के लिए हम
अपना जीवन जीना छोड़ देंगे? मेरी बड़ी दीदी की शादी के पहले दिन, चोर घर में सेंध
मारकर शादी के सभी सामान लेकर फरार हो गया. सवेरे-सवेरे जब लोगों ने देखा, तो
जोर-जोर से रोना धोना शुरू कर दिए. परन्तु मेरे पिताजी तो ऐसे बैठे थे जैसे उन पर
कोई फर्क नहीं पडा हो, एकदम निर्विकार. भोज का सामान फिर से ख़रीदा गया. तथा
स्व-जातीय बंधु-बांधवों के सामने वर के पिता को हाथ जोड़कर उन्होंने निवेदन किया था
कि एक हफ्ते के अन्दर दहेज़ का सभी सामान खरीदकर पहुंचा देंगे.
प्रेशर-कुकर की सिटी बज रही थी. भांप से मीट पकने की खुशबू भी चारों तरफ फैलने लगी
थी. फिर एक बार, ' कालिंग-बेल' बजने लगी थी. कौन आ गया इस दोपहर के समय? रसोई घर से
सुसी चिल्लाई,-" बेबी, दरवाजा खोलो तो."
: " माँ, आंटी लोग आये है?" बेबी ने कहा था.
संकोचवश जड़वत हो गयी थी सुसी.कालोनी के सात-आठ औरतें. इधर रसोई घरसे मटन पकने की
सुवास चारों तरफ फ़ैल रही थी. कोशिश करने से भी वह छुपा नहीं पायेगी. देखो,कितना
पराधीन है इंसान? अपनी मर्जी से वह जी भी नहीं सकता.
फिर एकबार दिखाना पडा सबको वह टूटी हुई अलमीरा को खोलकर.
:"हाँ, देख रहे हैं न?"
:"अन्दर का लॉकर भी."
:"हाँ, उसको तो पीट-पीटकर टेढा कर दिए हैं."
फिर एकबार बाथरूम का टूटा हुआ रोशनदान, फिर एकबार शो-केस की वह खाली जगह,फिर एकबार
कितना गया की रट. फट से बेबी बोली,:" ६ जोड़ी कान के झुमके, मेरी चेन, माँ का मंगल
सूत्र---"
": इतना सारा सामान आप घर में छोड़कर बाहर चले गए थे? फिर भी मोटा-मोटी कितने का
होगा?"
": सत्तर या अस्सी हजार के आस-पास ."
:" लाख बोलिए न, जो रेट बढा है आजकल सोने का.चोर के लिए छोड़कर गए थे जैसे. चोर की
तो चांदनी हो गयी."
फिर एक बार प्रेशर-कुकर की सिटी बजने लगी. अब सुसी का चेहरा गंभीर होने लगा. ये
औरतें जा क्यों नहीं रही हैं? दोपहर में भी इनका कोई काम-धन्धा नहीं है क्या?
घूम-घूमकर सारे कोनों को देख रही हैं. घर की बहुत सारी जगहों पर मकडी के जाले झूल
रहे थे, धूल-धन्गड़ जमा था.ये सब उनकी नजरों में आयेगा. और जब ये घर से बाहर
जायेंगे, तो इन्हीं बातों की चर्चा भी करेंगे. फिर, उपर से आ रही थी पके हुए मटन की
महक.धीरे-धीरे सुसी उनसे हट कर चुप-चाप रहने लगी.ये सब औरतें गप हांक रही थीं. कब,
किसके घर कैसे चोरी हुई. इन्हीं सब बातों को लेकर वे रम गयी थीं.
अजितेश कंप्यूटर के सामने बैठे-बैठे खों-खों कर खांसने लगा था .नहीं तो पता नहीं,
कितनी देर तक वे औरतें बातें करती?
उस समय तक सुसी को ज्यादा दुःख नहीं हुआ था. लोग आ रहे थे, देख रहे थे, सहानुभूति
जता रहे थे. सबको टूटी-फूटी अलमीरा, चोर के घुसने का रास्ता दिखा रही थी. पर जब
सुसी पूजा करने गयी, तो मानो उसके धीरज का बांध टूट गया हो.भगवन की छोटी-छोटी
मूर्तियाँ, अपने-अपने निश्चित स्थान से गिरी हुई थीं. डिब्बे में से प्रसाद नीचे
गिर गया था . धुप, अगरबत्ती, सब बिखरा हुआ था इधर उधर. सिंदूर की डिब्बिया भी गिरी
हुई थी. होम की लकडियाँ भी बिखरी हुई थी इधर-उधर.चोर उपवास-व्रत वाली किताबों की
पोटली खोलकर लगभग तीस चांदी के सिक्कों को भी ले गया था.कितने सालों से धन-तेरस पर
खरीद कर इकट्ठी की थी सुसी ने. एक ही झटके में सारी स्मृतियाँ विलीन सी हो गयी.
भगवान की मूर्ति को किसी गंदे हाथों ने जरुर छुआ होगा.उनकी अनुपस्थिति में चोर
ने जरुर इधर-उधर स्पर्श किया होगा. मन के अन्दर से उठते हुए विचार, तुरन्त ही
असहायता में बदल गए हो जैसे. सुसी के घर में और कुछ छुपी हुई चीज बाकी नहीं थी.चोर
को तो जैसे हरेक जगह का पता चल गया था. उसका घर अब उसे घर जैसा नहीं लगा.फटे-पुराने
कपडों से लेकर, कीमती सिल्क की साडी कहाँ रखती थी सुसी, मानो चोर को सब मालूम हो
गया था. दीवार की छोटी से छोटी दरार से लेकर घर की बड़ी से बड़ी, गुप्त से गुप्त
जगह की जानकारी भी थी चोर के पास.
तुरन्त ही सुसी को याद आ गया टूटे हुए शीशे के अन्दर से दिखा हुआ अलमीरा का वह
ह्रदय-विदारक दृश्य. ऐसे चित्त सोयी पड़ी थी वह अलमीरा, जैसे किसी ने उसे जमीन पर
लिटाकर जबरदस्ती उसके साथ बलात्कार कर दिया हो. खुले हुए दोनों पट ऐसे लग रहे थे,
मानो उस नारी ने अपनी कमजोर बाहें विवश होकर फैला दी हो. पूरे शरीर पर दाग ही दाग.,
मानो शैतान के नाखूनों से लहू-लुहान होकर हवश का शिकार बन गयी हो. रंग की परत हटकर
प्राइमर तो ऐसे दिख रहा था मानो लाल-लाल खून के धब्बे दिख रहे हो. दुखी मन से सुसी
की छाती भर आयी थी . फिर अपने-आपको संभालते हुए बोली थी ,-"अरे, सुन रहे हो?"
खाने का इंतज़ार करते-करते नींद से बोझिल सा हो रहा था अजितेश. सुसी की आवाज सुनकर
नींद में ही बडबडाने लगा,: " क्या हुआ ?"
क्या बोल पाती सूसी? उसके अन्दर तो फूट रही थी एक अजीब से अनुभव की ज्वालामुखी!
कैसे बखान कर पायेगी किसीको?चुप हो गयी थी सुसी.
:" क्या हो गया? क्यों बुला रही थी?"
फिरसे अजितेश ने पूछा, "जल्दी पूजा खत्म करो, मुझे जोरों की नींद लग रही है. खाना
खाते ही सो जाऊंगा."
भगवान की मूर्तियाँ अब उसे अछूत लगने लगी थीं. चोर ने उन सबको बच्चों के खिलौनों के
भांति लुढ़का दिया था. उसके कठोर, गंदे हाथों ने स्पर्श किया होगा उन मूर्तियों को
. उसने संक्षिप्त में ही सारी पूजा समाप्त कर दी.
खाना परोसते समय और एक बार अनमने ढंग से बोलने लगी थी सुसी,:" सुन रहे हो ?"
:" क्या हुआ ?" इस बार गुस्से से बोला था अजितेश,"क्या बोलना है , बोल क्यों नहीं
रही हो ? एक घंटा हो गया सिर्फ 'सुनते हो' 'सुनते हो' बोल रही हो."
:" मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा है." बोली थी सुसी.
:" कौनसी बड़ी बात है? यह तो स्वाभाविक है. चोरी हुई है, मन को तो जरुर ख़राब लग
रहा होगा."
:" नहीं ऐसी बात नहीं,:
:" फिर , क्या बात है?"
:" मुझे ऐसा लग रहा है हमारे घर का कुछ भी गोपनीय नहीं बचा है. किसी ने अपने गंदे
हाथ से सब कुछ छू लिया है. ऐसा कुछ बचा नहीं जो अन-देखा हो"
अजितेश आश्चर्य-चकित हो कर देखने लगा था सुसी को. ऐसा लग रहा था , जैसे सुसी के सभी
दुखों का बाँध ढहकर भी अजितेश के ह्रदय को छू नहीं पा रहा हो.