चोर-उचक्का
‘अजी
सुनते हो’रसोई
से सुनीता की आवाज थी‘आज
बिजली का बिल भरने की
आखिरी तारीख है.बिल
ड्रैसिंग टेबुल की दराज में है लेते जाना.’
रमेश
सुनीता का
पति दफ्तर में देरी होने के कारण जला-भुना
बैठा था.अब
बिल की बात सुनकर और हड़बड़ा
गया बोला‘मार्च
के आखिरी दिन हैं,केजुअल
लीव भी शेष नहीं हैं.बास
छुट्टी नहीं
देगा,तुम्ही
भरना’.
‘
मगर मुझे बिट्टू के स्कूल जाना है,अभिभावक
मिलन है आजऔर
तुम खुद ही तो कहते हो कि आजकल घर से ज्यादा बाहर रहना चोर-उचक्कों
को दावत देना
है.पिछले
सप्ताह जब मै अपनी सहेली को डाक्टर के पास ले गई थी तो कितना बड़ा भाषण दे
डाला था तुमने,अब
खुद ही बिल भरना’.सुनीता
ने रसोई से ही जवाब दिया था.
बिट्टू
जो पास ही खड़ा था रमेश से पूछ बैठा‘पापा
!
चोर-उचक्का
क्या
होता है ?
रमेश ने
अपना बैग उठाते हुए कहा ‘बेटे
दफ्तर में देर हो जायेगी ,आकर
बतलाऊंगा’
फिर जोर से
कह उठा ‘सुनीता
आज तो बिल तुम्हें ही भरना होगा’और
तेजी से बाहर लपका.
सड़क पर
आफिस की बस का चालक हार्न बजा रहा था,रमेश
अपराधी बना भाग कर बस में जा बैठा.आफिस
पहुंचकर फाइलों में डूबा ही था कि बास की स्टैनो
स्फूर्ति-सुन्दर-तेज-तर्रार,चुस्त-दुरुस्त
बिलकुल वैसी जैसी सिनेमा या टी.वी
सीरियल
में दिखाई जाती हैं वैसी स्टैनो जो रमेश के साथ केबिन शेयर करती थी आ पहुंची.और
अपना बैग खोलकर अपना मेक-अप
जो अभी बिगड़ा भी नहीं था
संवारने लगी.घंटी
बजी और वह
बास के केबिन में चली गई.स्फूर्ति
को
नौकरी में आये आये अभी कुल तीन-चार
महीने हुए
हैं
.उसके
पति आर्मी
में कैप्टन हैं फ़ील्ड ड्यूटी पर हैं अत:
परिवार को साथ नहीं
ले जा सकता.स्फूर्ति
कह चुकी है कि वह खालीपन की बोरियत से बचने के लिये
नौकरी कर
रही है.वह
मस्तमौला और खुले दिमाग की माड्रन लड़्की है.पिछले
सप्ताह उसने रमेश को
अपने साथ सिनेमा चलने की दावत दी थी.अगर
उस दिन सुनीता की बहन के यहां न जाना होता
तो वह हर्गिज यह मौका न गंवाता.
तभी स्फूर्ति लौट आई
.रमेश
ने पूछा ‘क्या
हुआ मिसेज वर्मा
.?
वह
चीख उठी‘ओह
!
नो,दिस
इज टू मच.आई
हैव रिक्वेस्टिड
यू टाइम एंड अगेन काल मी स्फूर्ति एंड नाट मिसिज वर्मा.’
‘आई
एम रियली
साँरी’रमेश
मिमियाया फिर पूछ्ने लगा ‘हुआ
क्या ?’
‘अरे
यार,होना
क्या था ?
मुझे
बिजली का बिल भरना है,आज
लास्ट डेट है.अगर
बिल
नहीं भरा तो कनेक्शन कट जाएगा और बास
कहता है कि जरूरी मीटिंग एक घंटॆ की भी छुटी नहीं मिल सकती’स्फूर्ति
रूआंसी हो आई
थी.
रमेश ने मौका लपकते हुए कहा‘अरे
यार,दोस्त
किस दिन के लिये होते हैं.लाओ
मुझे दो अपना बिल’और
उसने अपना हाथ स्फूर्ति के कंधे पर रख दिया.स्फूर्ति
ने उसका
हाथ नहीं हटाया.पर्स
खोलकर बिल दे दिया और बोली’मैं
तुम्हें चैक देती हूं,नगदी
भी
मेरे बैंक से निकलवानी पड़ेगी.’
‘
छोड़ो यार
!
आ गई ना
!
छोटी-छोटी
बातों पर
दोस्त किस दिन के लिये होते हैं.मैं
यूं गया और यूं आया.पीछे
से तुम सँभालना
लेना.’रमेश
ने आँखे नचाकर कहा और केबिन से बाहर हो गया.स्फूर्ति
ने कन्धे को वहां
जहां रमेश ने हाथ रखा था,
ऐसे झाड़ा जैसे वहां मिट्टी लग गई हो फिर होठ बिचकाकर
मुस्करा दी और बेग खोलकर लिपिस्टिक ठीक करने लगी ,उसके
खुले बैग की जेब में ठुंसे
नोट दिख रहे थे.
रमेश आटो करके बिजली दफ्तर पहुंचा.
यूं आठ सौ रुपए का बिल
देखकर उसका दिल डूब गया था परन्तु उसने मन समझा लिया था कि यह एक अच्छी
इन्वेस्ट्मेंट निवेश है.उसे
रह-रह
कर स्फूर्ति का सलोना बदन याद आरहा था
आटो
से उतर कर बिजली द्फ्तर पहुंचा वहां बिल भरने वालों की लम्बी लाइन देखकर परेशान हो
गया
.मरदों
की लाइन चींटी की चाल से सरक रही थी जबकि स्त्रियों की लाइन में
मात्र छ:
सात महिलायें थी.तभी
उसकी नजर लाइन में खड़ी अपनी बीवी पर पड़ी एक बार दिल
किया कि वह बिल उसे देदे कह देगा कि बास का बिल है.मगर
बिल तो केप्टन उपेन्द्र के
नाम था कहीं सुनीता पूछ बैठी तो ?
अभी वह सोच ही रहा था कि सुनीता ने
उसे
देखलिया ,वह
पास आकर बोली ‘आप’?
‘हाँ
क्या करूं बास ने भेज दिया’?
रमेश ने बिल
जेब में सरकाते हुए कहा था
सउनीता
कहने लगी“हमारी
लाइन छोटी है लाइये मैं दोनो
भर देती हू ’
‘नहीं-नहीं
बिल मुझे दे दो और
तुम जलदी घर जाओ.चोर-उचक्को
का डर ’रमेश
ने कहा.
सुनीता ने बिल व पैसे रमेश को सौंपे और अनमनी सी चल दी.उसकी
समझ मे
रमेश का व्यवहार नहीं आरहा था
उधर रमेश एक तरफ तो जान बची और लाखों पायें दूसरी
और उसे बिट्टू का मासूम चेहरा याद आ रहा था जब उसने पूछा था
’पापा
चोर-उचक्का
क्या
होता है’.वह
सोचने लगा अगर बिट्टू ने शाम को फिर यही पूछ लिया तो वह क्या जवाब
देगा.
श्यामसखा
’श्याम’
१२ विकास नगर रोहतक १२४००१