इण्टरव्यू का दिन नजदीक था। हीरालाल नर्वस था। रिलैक्स डियर। कई बार वह
संगियों द्वारा कन्धे पर थपथपाया गया। टेक इट इजी। ''यार मुझे डर लग रहा
है।'' उसके चेहरे पर घबराहट ही नहीं कातरता भी आ जाती। तू रहेगा घोंचू का
घोंचू। मण्डली हॅस पड़ती। अपने कमरे में उसने अखबार की कतरनों को करीने से
फाइल में लगा कर रखा था। हिन्दी की पत्रिकाऍ भी मेज पर विद्यमान थीं।
अंग्रेजी की पढ़ने की सलाह भी दी गयी। लेकिन उसे समझने में दिक्कत होती थी।
फिर तो वहॉ बताने में और दिक्कत होती। दरअसल कठिनाई उसकी पृष्ठभूमि और
वातावरण की थी। अब जब यहॉ आकर सर्किल मिला तो वह कटा-कटा रहता था। कारण हीन
भावना थी।
वैसे तो वह सपने नहीं देखता था। दूसरे और नवजवानों की तरह। वह अपनी औकात
जानता था। लेकिन भई जानने का मतलब यह तो नहीं कि बिल्कुल न देखता हो। वह बस
इतना चाहता था कि उसकी मेहनत, संचित और अर्जित योग्यता तथा प्रतिभा का
समुचित प्रतिदान मिले। अब इतना भी न मिले तो.....। खीझ और निराशा आएगी ही
और साथ में देर-सबेर गुस्सा भी आएगा। लॉ के लिए उसने आवेदन कर दिया था।
वैसे लोगों में यह व्यापक धारणा थी कि जिसे कुछ नहीं करने का होता वह लॉ की
डिग्री के लिए एडमिशन ले लेता है। कई सालों की छुट्टी।
वैसे इण्टरव्यू के बारे में लोगों ने उसे बताया था। बोर्ड चोर है।
स्टूड़ेन्ट्स के विभिन्न ग्रुपों में डिस्कशन होता था। तैयारी के लिए यह
जरुरी था। वह वैसे किसी ग्रुप का स्थायी सदस्य नहीं था। लेकिन बीच में
आकर बातें सुनता था। जोगी एण्ड कम्पनी के ग्रुप में नताशा थी। जब भी किसी
टॉपिक पर शुरु होती तो फरार्टेदार अंग्रेजी बोलती। हीरालाल समझता था लेकिन
अपने अन्दर पनपने-बसने वाले विचार को उस भाषा में व्यक्त न कर पाने के कारण
जबरदस्ती का मौन धारण करता। वैसे वह नताशा से प्रभावित था।
एक बार उसने कहा भी,''आप इस बार टॉप करेगीं।'' इस पर वह हॅस दी। हीरालाल को
लगा उसकी हॅसी में व्यंग्य था। वह चोट खा गया। यह क्या बात हुई कि मैंने
तारीफ की और वह हॅस दी। लेकिन सेल्फ इस्टीम लो था। पूछ नहीं सका कि क्यों
हॅसी। उसने महापुरुषों की कतिपय कथाऍ पढ़ी थी। उनकी जीवनियॉ वगैरह। बचपन
में बाल-पत्रिकाओं में भी उसने वाकयात् पढ़े थे कि कोई गरीब लेकिन होनहार
लड़का था। उसकी मॉ ने खूब मेहनत और त्याग से उसे पढ़ाया। फिर वह बड़ा होकर
कुछ बन गया। सोचता था कि वह भी कुछ ऐसा ही करेगा। मॉ-बाप इतने जागरुक नहीं
थे। हॉ उन कहानियों की तरह गरीब जरुर थे। ऐसा नहीं था कि उन्होंने कुछ किया
नहीं। शहर पढ़ने भेजने वाले गॉव में कितने लोग थे। पक्के मकान वालों और
भूतपूर्व जमींदार लोगों की बात अलग थी। भारतीय संविधान को खूब पढ़ा उसने।
उस पर विद्वानों की टीकाऍ भी। भूमि-सुधारों के बारे में सोचने पर उसे
गुस्सा आता था। करोड़ों ऐसे लोग जिनके पास न तो खेती लायक जमीन है और न ही
दूसरे सहायक उपकरण, वे क्या खाक अपनी गरीबी दूर कर पाएगें। और भी बहुत कुछ
पढ़ा था उसने। जब धरती पर स्तनपायी प्राणी तेजी से उन्नति कर रहे थे तो
सॉपों ने अपने अन्दर शिकार के विरुद्व विष का विकास कर लिया। लो रासायनिक
युद्व तो तभी शुरु हो गया था। क्या पता जमीन मिल भी जाए तो कोई और बात आगे
आ जाए। इससे अच्छा अमेरिका-यूरोप है। न तो इतनी गरीबी है न ही भेदभाव, दूर
बैठे उसका यही ख्याल था। ब्रदर-इन-लॉ का मतलब ब्रदर-इन-लॉ। कोई साला-जीजा
नहीं। सब बराबर हैं। फिर औरतों को भी तो काफी आजादी है। अकेले में उसका खून
ज्यादा खौलता था। बस औरों के सामने आत्मविश्वास नहीं था।
जोगी खुद ज्यादा मेहनत नहीं करता था। लेकिन उसके मार्कस् पैंसठ-सत्तर के
बीच होते थे। ''जोगी बॉस कैसे कर लेते हो।'' एक दिन हीरालाल ने उससे
गुरुमंत्र पूछा। इस पर उसने उस पर एक नजर डाली और कहा,''तू रहेगा हमेशा
विद्यार्थी का विद्यार्थी।'' इसका मतलब वह आज तक नहीं समझ पाया था। वैसे
उसके एक सहपाठी का कहना था कि अभी भी बेईमानी सौ फीसदी नहीं है। दस में से
तीन तो मेरिट पर जाते ही हैं। ''लेकिन मेरी ऐसी मेरिट नहीं कि उन तीन में
से एक पा सकॅू।'' हीरालाल ने कहा।
''एक बात बताओ,'' सहपाठी उसका अंतरंग था,''बी.ए., एम.ए. करने वालों के लिए
क्या रखा है। या तो तुम आई.ए.एस. बन जाओ। क्वालिफिकेशन उसके लिए भी
ग्रैजुएशन ही है। लेकिन कर पाओगे.....? ये सब भी सर खपाई खोजते हैं।''
जिस नौकरी के इण्टरव्यू की तैयारी चल रही थी वह भी कुछ बुरी नहीं थी। वह
एरिया मैनेजर कहलाता। दो जिले कम्पनी उसे सुपुर्द कर देती। घर से ज्यादा
दूर नहीं रहना पड़ता। उसने अभी से कुछ अरमान पालने-पोसने शुरु कर दिए थे।
तमन्नाऍ मिश्रित थीं। घर का छप्पर बनवाने और अम्मा के लिए गर्म शाल लेने
जैसे आदर्शवादी पुत्र के ख्याल के साथ-साथ नताशा के साथ पिक्चर देखने या
इसी तरह का शगल करने जैसा नितांत व्यक्तिगत फैन्टेसी को साकार करना भी
इनमें शामिल था।
फैसले का दिन आ गया। हीरालाल का नम्बर नीचे से दूसरा था। आगे जो थे उनके
इण्टरव्यू के खत्म होने का इंतजार करना था। सो हाल में बैठा था। कभी-कभार
दूसरे प्रतियोगियों में हो रही बातचीत पर ध्यान देता। लेकिन उनमें शामिल
होने का सक्रिय प्रयास नहीं किया। वैसे वे लोग भी थोड़ा बहुत नर्वस ही
होगें। दो-एक लगातार सिगरेट भी रहे थे। उनके कमीज पर लटकी टाई फब रही थी।
उसने काफी पहले से ही इस अवसर के लिए कमीज-पैंट रख छोड़ी थी। काले पैंट पर
सफेद कमीज बुरी नही थी। फिर वह ऑटो से आया था। बस में कपड़ों की इस्तरी
खराब होने का अंदेशा रहता है। यह बात उसे एक दोस्त ने बतायी थी।
नाम पुकारे जाने पर वह साहस अर्जित करके उठा। अन्दर जाने से पहले उसे इजाजत
मॉगी। वह मिल गयी। पहॅुचने पर उसने बोर्ड के सदस्यों को नमस्कार किया। एक
लेडी भी थी। उसे अलग से नमस्ते किया। यह सब उसने खूब तैयार किया था। कुल छह
थे। दो-तीन उसे देख रहे थे। बाकी या तो पेपर वगैरह पढ़ रहे थे या आपस में
बातें। बैठने की परमीशन मॉगना वह भूल गया। इस गलती का अहसास होने पर वह उठ
खड़ा हुआ।
''नो-नो, प्लीज बी सीटेड मिस्टर हीरालाल।'' चेयरमैन मुस्कराया। वैसे बैठने
के लिए उन लोगों को कहना था। वह भी गलती कर गया। बैठ जाने के बाद उठने की
क्या जरुरत थी।
बोर्ड शायद उसकी क्वालिफिकेशन देख रहा था। ''वेल मिस्टर हीरालाल, फ्राम
वेयर डिड यू कमप्लिटेड योर प्राइमरी एजूकेशन।'' वह समझ गया। उसकी
प्रारम्भिक शिक्षा कहॉ से हुई, यह पूछा जा रहा था। लेकिन इसे अंग्रेजी में
बताना मुश्किल था। इतना साहस भी नहीं था कि साफ कह दे-मैंने साक्षात्कार के
लिए हिन्दी को माध्यम बनाया है।
''सर मैंने इण्टर तक प्रतापगढ़ जिले के राजकीय इण्टर कॉलेज में शिक्षा
प्राप्त की है।'' वह भर्रायी आवाज में बोला।
''प्रतापगढ़ .....!'' चेयरमैन साहब को शायद इस जगह के बारे में पता नही था।
''ए डिस्ट्रिक इन इस्ट्रन यू.पी. सर...।'' इस बार वह साफ अंग्रजी बोल गया।
''अपने बारे में कुछ बताइए।'' चेयरमैन लगता था साउथ का था।
''सर मै....।'' पहले वह अपने घर का परिचय देना चाहता था। फिर उचित न समझ कर
रुक गया। ''मैंने ग्रेजुएशन करने के बाद लॉ में एडमिशन के लिए एप्लाई किया
है....।''
''यू मीन एल.एल.बी.।''
''यस सर।''
''ग्रेजुएशन में क्या सब्जेक्टस् थे आपके ?'' चेयरमैन ने पूछा।
''हिस्ट्री सर...।''
''हिस्ट्री...वाई यु हैव चुजेन हिस्ट्री ?''
''इसलिए कि...,'' वह गला साफ करने गला,''....इतिहास के अध्ययन से पता चलता
है कि हमारे पूर्वजों ने क्या-क्या गलतियॉ की थी और हम कैसे उनसे बच सके।''
''रिएली...सीम्स फनी।'' बोर्ड के सदस्यों के चेहरे पर मुस्कान दौड़ गयी।
''नहीं सर, इससे हमें यह भी मालूम होता है कि मानव जाति की अब तक की क्या
उपलब्धियॉ रही हैं। हम अपनी संस्कृति और सभ्यता के बारे में जानते हैं।''
उसने अपने उत्तर के अधूरेपन को भरा।
''और दूसरे सब्जेक्ट्स क्या थे ?''
''राजनीति शास्त्र और अर्थशास्त्र....सर।'' वह बोला।
''आज के इकोनोमिक लिबरेलाइजेशन के बारे में आप क्या सोचते हैं ?'' एक
सदस्य ने सवाल किया।
''सर यह बहुत अच्छी बात है,'' हीरालाल ने उत्तर देना शुरु किया,''लेकिन
विकास के लाभ सभी को मिलने चाहिए न कि केवल कुछ लोगों को। हमारे देश में
आर्थिक और सामाजिक विषमता काफी है। अगर उदारीकरण और भूमंडलीकरण का फायदा
केवल पहले से ही विकसित वर्गो तक सीमित रहे तो ऐसे विकास का कोई फायदा नहीं
है। बल्कि उलटे यह सामाजिक तनाव को बढ़ाएगा जिसका हमारे चालाक राजनेता
जातीय और साम्प्रदायिक रंग देकर लाभ उठाएगें। कृषि के क्षेत्र में
भूमि-सुधार करके हम...।''
''आप इस बात को मानेगें कि नए इकोनोमिक रिफार्मस् ने इम्प्लायमेंट
जेनेरेशट्स किए हैं। यंग जेनेरेशन को न्यू एवेन्यूशस् दिए हैं ?'' दूसरे
सदस्य ने बीच में बात काट कर कहा। वह अचकचा गया। एक लय में बोल रहा था। अब
अचानक व्यवधान से तारतम्य टूट गया और साथ ही उसे लगा कि बोर्ड उसकी बातों
से सहमत नहीं है। ''देखिए,'' वह हाथों का इस्तेमाल समझाने के लिए करता हुआ
बोला,''महात्मा गॉधी समाज के सबसे गरीब व्यक्ति के ऑसू पोछने की बात किया
करते थे। इसलिए मैं समझता हॅू कि तरक्की की रोशनी सबसे नीचे तक पहॅुचने
चाहिए। इसलिए मेरा यह कहना है कि....।''
''लुक मिस्टर हीरालाल। प्लीट जरा शार्ट में बताइए।'' इस बार पहले सदस्य ने
टोका। मूल प्रश्न उसी का था। हीरालाल ने देखा कि एकमात्र महिला सदस्य छत
की ओर मॅुह करके मुस्करा रही थी।
वह एकदम चुप हो गया। ''शॉर्ट में क्या बताऊॅ सर,'' वह सहसा उत्तेजित हो
गया,''सदियों की एक्सप्लॉएटेशन, दासता, गरीबी और लाचारी को कैसे शॉर्ट में
कहॅू। हमारे गॉव को छोड़िए। दस मील तक कोई ऐसा स्कूल नहीं जिसमें छत, दीवाल
और टीचर सब हो। हमारे मॉ-बाप अभी भी जोहड़ का पानी पीते हैं। ज्यादातर में
पीने का साफ पानी भी नहीं मिलता। सड़क, बिजली को छोड़िए। ये फाइव इअर प्लान
क्या उपलब्धियॉ दिखाते हैं ?....मेरे दो भाई कॉलरा से मरे। मैं शहर में आकर
पढ़ा हॅू। लेकिन इसके लिए मेरे मॉ-बाप को अपने बाल-बाल गिरवी रखने पड़े
हैं। क्या शॉर्ट में चाहते हैं ? देश का संविधान शॉर्ट में बताऊॅ ?
क्या-क्या लिखा है प्रिएम्बल में...और डायरेक्टीव प्रिन्सिपल्स
और....फनडामेंटल राईट्स में...? मनु-स्मृति की बात करु ?'' वह जैसे गवई-लंठ
हो गया। ''आदर्श और नैतिकता बस पाठ्य-पुस्तकों तक सीमित हैं। व्यवहार में
लोग पैसे और स्टेट्स के पीछे भागते हैं। किसी भी कन्ट़्री का मूल्यांकन
उसके औद्योगिक ढ़ांचे, पर कैपिटा इन्कम या सड़क पर भागते कारों की तादाद से
नहीं बल्कि उसके निवासियों के चरित्र से लगाया जाता है।....आखिर हम हैं
कहॉ...?'' वह हॉफ गया।
अपनी फाइल उठाकर बाहर जाने से पहले उसने ने तो बोर्ड को गुडबाई किया और न
ही कायदे से दरवाजा बन्द करने की कोशिश की।