वसीयत
- महावीर शर्मा
 
सुबह नाश्ते के लिये कुर्सी पर बैठा ही था कि दरवाज़े की घण्टी बज उठी। उठने लगा तो सीमा ने कहा, "आप चाय पीजिये, मैं जाकर देखती हूं।"
दरवाज़ा खोला तो पोस्टमैन ने सीमा के हाथ में चिट्ठी देकर दस्तखत करने को कहा.
"किस की चिट्ठी है?" मैंने बैठे बैठे ही पूछा।
चिट्ठी देख कर सीमा ठिठक गई  और आश्चर्य से बोली, " किसी सॉलिसिटर का है। लिफ़ाफ़े पर भेजने वाले का नाम 'जॉन मार्टिन-सॉलिसिटर्स' लिखा है।"
यह सुनते ही मैं ने चाय का प्याला होंटों तक पहुंचने से पहले ही मेज पर रख दिया। इंग्लैण्ड में वैध रूप आया था, और इस ६५ वर्ष की आयु में वकील का पत्र देख कर दिल को कुछ घबराहट होने लगी थी। उत्सुकता और भय का भाव लिए पत्र खोला तो लिखा था.
“जेम्स वारन, ३० डार्बी एवेन्यू , लंदन निवासी का ८५ वर्ष की आयु में २८ नवंबर २००४ को  देहांत हो गया। उसकी वसीयत में अन्य लोगों के साथ आपका भी नाम है। जेम्स की वसीयत १५ दिसम्बर २००४ दोपहर के बाद ३ बजे जेम्स वारन के निवास पर पढ़ी जायेगी। आप से अनुरोध है कि आप निर्धारित तिथि पर वहां पधारें या आफिस के पते पर टेलीफोन द्वारा सूचित करें।”
"यह जेम्स वारन कौन है? सीमा ने उत्सुकता से कहा. "मेरे सामने तो आपने कभी भी इस 
व्यक्ति का कोई जिक्र नहीं किया।"  
मैं जैसे किसी पुराने टाइमज़ोन में पहुंच गया। चाय का एक घूंट पीते हुए मैं ने सीमा को 
बताना शुरू किया।  
 “उस समय मैं अविवाहित था और लंदन में रहता था। मैं कभी कभी दो मील की दूरी पर एवेन्यू 
पार्क में जाता था। वहां एक अंगरेज़ वृद्ध जिस की उम्र लगभग ५५ - ६० की होगी, बैंच पर अकेला बैठा रहता और वहां से गुजरने वाले हर व्यक्ति को हंस कर "गुड-मॉर्निंग" या "गुड डे" कह कर इस अंदाज़ मेंअभिवादन करता, जैसे कुछ कहना चाहता हो।
इंगलैंड में धूप की खिलखिलाती हो तो कौन उस बूढ़े की ऊलजलूल बातों में समय गंवाए ? 
यह सोच कर लोग उसे नज़रअंदाज़ कर चले जाते और बैंच पर अकेला बैठा होता था। मैं भी औरों 
की तरह आंखें नीचे किए कतरा कर चला जाता। 
 
हर रोज अंधेरा होने से पहले बूढ़ा अपनी जगह से उठता और धीरेधीरे चल देता।मैं कभी अनायास ही पीछे मुड़ कर देखता तो हाथ हिला कर "हैलो" कह कर मुस्कुरा देता। मैं भी उसी 
प्रकार उत्तर देकर चला जाता।
यह क्रम चलता रहा। एक दिन रात को ठीक से नींद नहीं तो विचारों के क्रम में बारबार 
बूढ़े की आकृति सामने आती रही, फिर नींद लगी तो देर से सो कर उठा। सामान्य कार्यों के बाद 
कुछ भोजन कर कपड़े बदले और पार्क जा पहुंचा। 
बूढ़ा उसी बैंच पर मुंह नीचे किए हुए बैठा हुआ था। इस बार  कतराने के बजाय मैं
ने उस से कहा,"हैलो, जेंटिलमैन!"
 बूढ़े ने मुंह ऊपर उठाया। उसकी नजरें कुछ क्षणों के लिए मेरे चेहरे पर अटक 
गई। फिर एक दम से उसकी आंखों में चमक सी आगई। वह बड़े उल्लासपूर्वक बोला, 
"हैलो, सर। आप मेरे पास बैठेंगे क्या? ..."  
मैं उसी बैंच पर उसके पास बैठ गया। बूढ़े ने मुझ से  हाथ मिलाया, जैसे कई वर्षों 
के बाद कोई अपना मिला हो। मैंने पूछा," आप कैसे हैं?"
जब कोई दो व्यक्ति मिलते हैं तो यह एक ऐसा वाक्य है जो स्वतः ही मुख से निकल 
जाता है। कुछ देर मौन ने हम को अलग रखा था पर मैंने ही फिर पूछा ," आप पास में ही रहते हैं? "
मेरे इस सवाल पर ही उस ने बिना झिझक के कहना शुरू कर दिया, " मेरा नाम जेम्स वारन है। ३० डार्बी एवेन्यू , फिंचले में अकेला ही रहता हूं।"
मैंने कहा, " मिस्टर वारन ....", “नहीं, नहीं ... जेम्स! आप मुझे जेम्स कह कर ही पुकारें तो मुझे अच्छा लगेगा।" जेम्स ने मेरी बात पूरी कहने से पहले ही कह दिया। 
मैं जानता था कि जेम्स वारन के पास कहने को बहुत कुछ है, जिसे उस ने अंदर दबा 
कर रखा है क्हयोंकि कोई सुनने वाला नहीं है। उस के अचेतन मन में पड़ी हुई पुरानी यादें 
चेतना पर आने के लिए संघर्ष कर रही होंगी किंतु किस के पास इस बूढ़े की दास्तान सुनने 
के लिए समय है?
जेम्स ने एक आह सी भरी और कहना शुरू किया,
"मैं अकेला हूं। चार बैड-रूम के मकान की भांयभांय करती हुई दीवारों से पागलों 
की तरह बातें करता रहता हूं।”
इतना कह कर जेम्स ने चश्मे को उतारा और उसे साफ़ कर के दोबारा बोलना शुरू 
किया।
‘ऐथल, यानी मेरी पत्नी, केवल सुंदर ही नहीं, स्वभाव  से भी बहुत अच्छी थी। हम दोनों एक 
दूसरे की सुनते थे। उसके साथ दुख का आभास ही नहीं होता था तो दुख की पहचान कैसे होती?।
‘एक दिन पत्नी ने मुझे जो बताया उसे सुन कर मैं फूला न समाया था। पिता बनने की 
खबर ने जुझे ऐसे हवाई सिंहासन पर बैठा दिया जैसे एक बड़ा साम्राज्य मेरे अधीन हो। मेरी मां 
ने दादी बनने की खुशी  में घर पर परिचितों को बुला कर पार्टी दे डाली। इस तरह ८ महीने 
आनंद से बीत गए। ऐथल ने अपने आफिस से अवकाश ले लिया था। मैं सारे दिन बच्चे और 
ऐथल के बारे में सोचता रहता।
       ‘एक रात जब मूसलाधार वर्षा हो रही थी।  ऐथल के ऐसा तेज़ दर्द हुआ जो उस के लिए सहना कठिन था। मैंने एम्बुलैंस मंगाई और ऐथल की करहाटों व अपनी घबराहट के साथ 
अस्पताल पहुंच गया।
 ‘नर्सों ने एंबुलेंस से ऐथल को उतारा और तेजी से सी.आई.यू. में ले गईं। डॉक्टर ने 
ऐथल की हालत जांच कर कहा कि शीघ्र ही  आप्रेशन करना पड़ेगा। अंदर डॉक्टर और नर्सें 
ऐथल और बच्चे के जीवन और मौत के बीच अपने औज़ारों से लड़ते रहे, बाहर मैं अपने से 
लड़ता रहा। काफी देर के बाद एक नर्स ने आकर बताया कि तुम एक लड़के के पिता बन गये 
हो। खुशी में एक उन्माद सा छागया। नर्स को पकड़ कर मैं नाचने लगा। नर्स ने मुझे ज़ोर 
से झंजोड़ सा दिया पर मेरा हाथ जोर से दबाए रही। कहने लगी,"मिस्टर वारन, मुझे बहुत ही 
दुख से कहना पड़ रहा है कि  डाक्टरों की हर कोशिश के बाद भी आपकी पत्नि नहीं बच सकी।”
जेम्स ने आंखों से चश्मा उतार कर फिर साफ किया। उसकी आंखें आंसुओं के भार को संभाल ना पाई। एक लम्बी सांस छोड़ी और इस वेदना भरी कहानी जारी करते हुए कहा, 
"माँ पोते की खुशी और ऐथल की मृत्यु की पीड़ा में समझौता कर जीवन  को सामान्य बनाने की कोशिश करने लगी। मेरी माँ बड़ी साहसी थीं। उन्होंने बच्चे का नाम विलियम वारन रखा 
क्योंकि विलियम ब्लेक, ऐथल का मनपसंद लेखक था।
       ‘इसी तरह ८ वर्ष बीत गए। माँ बहुत बूढ़ी हो चुकी थी। एक दिन वह भी विलियम को 
मुझे सौंप कर इस संसार से विदा लेकर चली गई। उस दिन से विलियम के लिये मैं ही माँ, दादी और पिता के कर्तव्यों को पूरी जिम्मेदारी से निभाता। उसे प्रातः नाश्ता देकर  स्कूल 
छोड़ कर अपने दफ्तर जाता। वहां से भी दिन के समय स्कूल में फोन पर उसकी टीचर से 
उसका हाल पूछता रहता।  विलियम की उंगली में जरा सी चोट लग जाती  तो मुझे ऐसा लगता 
जैसे मेरे सारे शरीर में दर्द फैल गया हो। 
‘इतने लाड़ प्यार में पलते हुए वह १८ वर्ष का हो गया। ए-लैवल की परीक्षा में ए ग्रेड में पास 
होने की खबर सुन कर मैं बेहद खुश हुआ था। जब आक्सफर्ड यूनिवर्सिटी से आनर्स की डिग्री 
पास की तो मेरे आनंद का पारावार न था।
‘विलियम की गर्लफ्रैंड जैनी जब भी उसके साथ हमारे घर आती तो मैं खुशी से नाच 
पड़ता। जैनी और विलियम का विवाह उसी चर्च में संपन्न हुआ जहां मेरा और ऐथल का विवाह 
हुआ था। एक वर्ष के पश्चात ही वलियम और जैनी ने मुझे दादा बना दिया। उस दिनमुझे माँ 
और ऐथल की बड़ी याद आई। मेरी आंख भर आई! पोते का नाम जॉर्ज वारन रखा।
‘हंसते खेलते एक साल बीत  गया। इतनी कशमकश भरे जीवन में अब आयु ने भी 
शरीर से खिलवाड़ करना शुरू कर दिया था।
"डैडी,जैनी और मुझे कंपनी एक बहुत बड़ा पद देकर आस्ट्रेलिया भेज रही है। वेतन 
भी बहुत बढ़ा दिया है, मकान, गाड़ी, हवाई जहाज़ की यात्रा के साथ कंपनी जॉर्ज के स्कूल 
का प्रबंध आदि सुविधाएं भी दे रही है, विलियम ने बताया तो मेरी आंखें खुली ही रह गईं।
‘यह सब सुन कर मैं धम्म से सोफे पर धंस गया तो विलियम मेरा आशय समझ मुसकरा  कर कहने लगा, " डैडी, आप अकेले हो जाएंगे। हम दोनों यह प्रस्ताव अस्वीकार कर देंगे। 
वैसे तो यहां भी सब कुछ है।"  
‘मैंने अपने आपको संभाला और कहा कि वाह, मेरा बेटा और बहू इतने बड़े पद पर 
जारहे हैं.मेरे लिए तो यह गर्व की बात है। सच, मुझे इससे बड़ी खुशी क्या सी होगी?"
‘जाने की तैयारियां होने लगीं। दिन तो बीत जाता पर रात में नींद न आती।
 कभी विलियम और जैनी तो कभी जार्ज के स्वास्थ्य की चिंता बनी रहती। 
‘वह दिन भी आ ही गया जब लंदन एयरपोर्ट पर विलियम, जैनी और जॉर्ज को 
विदा कर  भीगे मन से घर वापस लौटना पड़ा। विलियम और जैनी ने जातेजाते भी अपने वादे की 
पुष्टि की कि वे हर सप्ताह फोन करते रहेंगे और मुझ से आग्रह किया कि मैं उनसे मिलने के लिए 
आस्ट्रेलिया अवश्य जाऊं। वे टिकट भेज देंगे।
मन में उमड़ते हुए उद्गार मेरे आंसुओं को संभाल ना पाए। जार्ज को बार बार चूमा।
  एअरपोर्ट से बाहर आने के बाद वापस घर लौटने के लिए दिल ही नहीं करता था। कार को 
दिन भर दिशाहीन घुमाता रहा। शाम को घर लौटना ही पड़ा। सामने जॉर्ज की दूध की 
बोतल पड़ी थी, उठा कर सीने से चिपका ली और ऐथल की तस्वीर के सामने फूट फूट कर रोया।
‘चार दिन के बाद फोन की घण्टी बजी तो दौड़ कर रिसीवर उठाया,"हैलो डैडी!" 
यह स्वर सुनने के लिए कब से बेचैन था। मैं भर्राये स्वर में बोला, 
" तुम सब ठीक हो न, जॉर्ज अपने दादा को याद करता है कि नहीं?"  जैनी से भी बात की और यह जान कर दिल को बड़ा सुकून हुआ कि वे सब स्वस्थ और कुशलपूर्वक हैं।
‘विलियम ने टेलीफोन को जॉर्ज के मुंह के आगे कर दिया, तो उसके 'आंउ आंउ' की आवाज़ ने कानों में अमृत सा घोल दिया। थोड़ी देर बाद फोन पर वो आवाज़ें बंद हो गईं। 
‘तीन माह तक उनके टेलीफोन लगातार आते रहे, किंतु उसके बाद यह गति धीमी हो गई। मैं फोन करता तो कभी कह देता कि दरवाज़े पर कोई घंटी दे रहा है और फोन काट देता। 
बातचीत शीघ्र ही समाप्त हो जाती। छः महीने इसी तरह बीत गए। कोई फोन नहीं आया तो 
घबराहट होने लगी। 
‘एक दिन मैंने फोन किया तो पता लगा कि वे लोग अब सिडनी  चले गए हैं। यह 
भी कहने पर कि मैं उसका पिता हूं, नए किरायेदार ने उसका पता नहीं दिया। उसकी 
कंपनी को फोन किया तो चला कि उसने कंपनी की नौकरी छोड़ दी थी। यह जान कर तो 
मेरी चिंता और भी बढ़ गई थी।
‘मेरा एक मित्र आर्थर छुट्टियां मनाने तीन सप्ताह के लिए
आस्ट्रेलिया जा रहा था। मैं ने उसे अपनी समस्या बताईतो बोला कि वह दो दिन सिडनी में रहेगा 
और यदि विलियम का पता कहीं मिल गया तो मुझे फोन कर के बता देगा। आर्थर का फोन 
नहीं आया। तीन सप्ताहों की अंधेरी रातें अंधेरी ही रहीं।
        ‘तीन सप्ताह के पश्चात जब आर्थर वापस आया तो आशा दुख भरी निराशा  में बदल गई। 
विलियम और जैनी उसे एक रेस्तरां में मिले थे किंतु वे किसी आवश्यक कार्य के कारण जल्दी 
में अपना पता, टेलीफोन नंबर यह कह कर नहीं दे पाए कि शाम को  डैडी को फोन करके नया पता आदि बता देंगे।
‘उसके फोन की आस में अब हर शाम टेलीफोन के पास बैठ कर ही गुज़रती है। जिस 
घण्टी की आवाज़ सुनने के लिए इन छः सालों से बेज़ार  हूं, वह घण्टी कभी नहीं सुनी। हो 
सकता है कि उसे डर लगता हो कि कहीं बाप आस्ट्रेलिया ना धमक जाए।
 
जेम्स ने एक लंबी सांस ली। मुझ से पता पूछा तो मैं ने जेब से अपना विजिटिंग कार्ड
निकाल कर  दे दिया और बोला, " मिस्टर जेम्स, किसी भी समय मेरी जरूरत हो तो अब बिना झिझक के मुझे फोन कर देना। आइए, मैं आपको आप के घर छोड़ देता हूं। 
मेरी कार बराबर की गली में खड़ी है।'
"धन्यवाद! मैं पैदल ही जाऊंगा क्योंकि इस प्रकार मेरा व्यायाम भी हो जाता है।" 

घर आने पर देखा तो डाक में कुछ चिट्ठियां पड़ी थीं। मैंने कोर्बी टाउन के एक स्कूल में गणित विभाग के अध्यक्ष के पद के लिये साक्षातकार दिया था। पत्र खोला तो 
पता चला कि मुझे नियुक्त कर लिया गया है।
नये स्कूल के लिये अपनी स्वीकृति भेज दी। जाने में केवल एक सप्ताह शेष था।
जाते हुए जेम्स से विदा लेने के लिए उसके मकान पर गया पर वह वहां नहीं था। पड़ौसी 
से पता लगा कि अस्पताल में भरती है। इतना समय नहीं था कि अस्पताल में जाकर 
उसका हाल देख लूं।
 
एक दिन की मुलाकात मस्तिष्क की  चेतना पर अधिक समय नहीं टिकी। समय के साथ  
मैं जेम्स को बिल्कुल भूल गया।
वकील के पत्रानुसार नियत समय पर जेम्स के घर पर पहुंच गया। उसी दरवाजे पर घण्टी का बटन दबाया जहां से ३० साल पहले जेम्स से मिले बिना ही लौटना पड़ा था। आज 
बड़ा विचित्र सा लग रहा था। लगभग ४५ वर्षीय एक व्यक्ति ने दरवाजा खोला।
मैंने अपना और सीमा का परिचय दिया तो वकील ने भी अपना परिचय देकर हमें अंदर ले जा कर लाउंज में एक सोफे पर बैठा दिया, वहां तीन पुरुष और एक महिला पहले ही मौजूद थे। 
मार्टिन ने हम सब का परिचय कराया। एक सज्जन आर.एस.पी.सी.ए. (दि रॉयल सोसायटी फॉर दि प्रिवेंशन आफ क्रुएल्टी टु ऐनिमल्स) का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। अन्य तीन, 
विलियम वारन (जेम्स वारन का पुत्र), उसकी पत्नीजैनी वारन तथा जेम्स का पौत्र जॉर्ज वारन थे जो आस्ट्रेलिया से आए थे।
बाईं ओर छोटे से नर्म गद्दीदार गोल बिस्तर में एक बड़ी प्यारी सी काली और सफेद 
रंग की बिल्ली कुंडली के आकार में सोई पड़ी थी, जिसका नाम 'विलमा' बताया गया।
 
मार्टिन ने अपनी फाइल से वसीयत के कागज़ निकाल कर पढ़ना शुरू किए।अपनी संपत्ति के वितरण के बारे में कुछ कहने से पहले जेम्स ने अपनी सिसकती वेदना का चित्रण 
इन शब्दों में किया था:
"लगभग ४ दशक पहले मेरे अपने बेटे विलियम और उसकी पत्नी जैनी ने लंदन छोड़ कर 
मुझे मेरे हाल पर छोड़ दिया। मैं फोन पर अपने पोते और इन दोनों की आवाज़ सुनने को तरस 
गया। मैं फोन करता तो शीघ्र ही किसी बहाने से काट देते और एक दिन इस फोन ने मौन धारण 
कर यह सहारा भी छीन लिया। किसी कारण स्थानांतरण होने पर बेटे ने मुझे नए पते या 
टेलीफोन नंबर की सूचना तक नहीं दी। मैं इस अकेलेपन के कारण तड़पता रहा। कोई बात 
करने वाला नहीं था। कौन बात करेगा, जिसका अपना ही खून सफेद हो गया हो। 
‘६ साल जीभ बिना हिले पड़ीपड़ी बेजान हो गई थी कि एक दिन एक भारतीय सज्जन 
राकेश वर्मा ने पार्क में इस मौन व्यथा को देखा और समझा। मेरे उमड़ते हुए उद्गारों को इस 
अनजान आदमी ने पहचाना। विडम्बना यह रही कि वह भी व्यक्तिगत कारणों लंदन से दूर चले 
गये।  
‘राकेश वर्मा के साथ एक दिन की भेंट मेरे सारे जीवन की धरोहर बन यादों में एक सुकून 
देती रही, फिर इस भयावह अकेलेपन ने धीरेधीरे भयानक रूप ले लिया।आयु और शारीरिक 
रोगों के अलावा मानसिक अवसाद ने भी मुझे घेर लिया। 
‘इस अभिशप्त जीवन में एक आशा की लहर मेरे मकान के बाग में
न जाने कहां से एक बिल्ली के रूप में आगई। कौन जाने इसका मालिक भी देश छोड़ गया 
हो और इसे भी इसके भाग्य पर मेरी तरह  ही अकेला छोड़ गया हो! बिल्ली को मैंने एक
नाम दिया - 'विलमा'।  
‘दो-तीन दिनों में विलमा और मैं ऐसे घुलमिल गए जैसे बचपन से हम दोनों साथ 
रहे हों। मैं उसे अपनी कहानी सुनाता और वह 'मियाऊंमियाऊं' की भाषा में हर बात का उत्तर 
देती। मुझे ऐसा लगता जैसे मैं नन्हें जॉर्ज से बात कर रहा हूं। 
‘एक दिन वह जब बाहर गई और रात को वापस नहीं लौटी तो मैं बहुत रोया, 
ठीक उसी तरह जैसे जॉर्ज, विलियम और जैनी को छोड़ने के बाद  दिल की पीड़ा को 
मिटाने के लिए रोया था। मैं रात भर विलमा की राह देखता रहा।  अगले दिन वह वापस आगई। बस, यही अंतर था विलमा और विलियम में जो वापस नहीं लौटा।
‘विलमा के संग रहने से मेरे मानसिक अवसाद में इतना सुधार हुआ जो अच्छी से
अच्छी दवाओं से नहीं हो पाया था। उसने मुझे एक नया जीवन दिया। वह कब क्या चाहती 
है, मैं हर बात समझ लेता था - ये सब वर्णन से बाहर है, केवल अनुभूति ही हो सकती है।”
 
विलियम, जैनी और जॉर्ज, तीनों के चेहरों पर उतार चढ़ाव कभी रोष तो कभी पश्चाताप के लक्षणों का स्पष्टीकरण कर रहे थे।    
जेम्स ने अपनी वसीयत में मुख्य रूप से कहा था कि मेरी सारी चल और अचल 
सम्पत्ति में से समस्त टैक्स तथा हर प्रकार के वैध खर्च, बिल आदि देने के बाद शेष बची 
रकम का इस प्रकार वितरण किया जायेः
‘मिस्टर राकेश वर्मा , जिनका पुराना पता था: २३ रैले ड्राइव, वैटस्टोन, लन्दन एन २०, को दो हजार पौण्ड दिये जाएं और उनसे मेरी
ओर से विनम्रतापूर्वक कहा जाए कि यह राशि उनके उस एक दिन का मूल्य ना समझा जाए 
जिस के कारण मेरे जीवन के मापदण्ड ही बदल गये थे। उन अमूल्य क्षणों का मूल्य तो चुकाने 
की सामर्थ्य किसी के भी के पास ना होगी। यह क्षुद्र रकम मेरे उद्गारों का केवल टोकन भर है। 

मेरे उक्त वक्तव्य से, स्पष्ट है कि विलियम वारन, जैनी वारन या जॉर्ज वारन इस 
सम्पत्ति के उत्तराधिकार के अयोग्य हैं।"  
 
वकील कहते कहते कुछ क्षणों के लिए रुक गया। विलियम, जैनी और जॉर्ज की मुखाकृति पर एक के बाद एक भाव आजा  रहे थे। वे कभी आंखें नीची करते हुए दांत 
पीसते तो कभी अपने कठोर व्यवहार पर पश्चात्ताप करते। 
विलियम अपने क्रोध को वश में ना रख सका और खड़े होकर सामने रखी मेज़ पर 
ज़ोर से हाथ मार कर जाने को खड़ा हो गया तो जैनी ने उसे समझाबुझा कर बैठा लिया। 
वकील ने पुनः वसीयत पढ़नी शुरू की तो यह जानकर सभी आश्चर्यचकित हो गये 
कि शेष समस्त सम्पत्ति विलमा बिल्ली के नाम कर दी गई थी और साथ ही कहा गया था कि 
आर.एस.पी.सी.ए. को 'विलमा' के शेष जीवन के पालनपोषण का अधिकार दिया जाए और 
इसी संस्था को प्रबंधक नियुक्त किया जाए। साथ ही एक सूची थी जिसमें विलमा को जेम्स
किस प्रकार रखता था, उसका पूरा वर्णन था। आगे लिखा था, 
'विलमा के निधन पर एक स्मारक बनाया जाए। उसके बाद शेष धन को राह भटके हुए, प्रताड़ित 
पशुओं की दशा के सुधारने पर व्यय किया जाए। 
मैंने मार्टिन से कहा, "यदि आप अनुमति दें तो ये दो हजार पौण्ड, जो वसीयत के 
अनुसार जेम्स वारन मुझे दे रहें हैं, इस राशि को भी 'विलमा' की वसीयत की राशि में ही मिला दें तो मुझे हार्दिक सुख मिलेगा।" 
वकील ने कहा," इस को विधिवत बनाने में थोड़ी अड़चन आ सकती है। हां, इसी 
राशि का एक चेक आर.एस.पी.सी.ए. को अपनी इच्छानुसार देना अधिक सुगम होगा।" 
 
अंत में औपचारिक शब्दों के साथ मार्टिन ने वसीयत बंद कर बैग में रखली।
बिल्ली,  जो अभी भी सारी कारवाही से अनजान सोई हुई थी, आर.एस.पी.सी.ए. के 
प्रतिनिधि को सौंप दी गई। इस प्रकार वकील का भी प्रतिदिन विलमा की देखरेख का भार समाप्त होगया। सब मकान से बाहर आगए।
 
मैंने सीमा से कहा कि मैं तुम्हें उस मकान पर लेजाता हूं जहां लंदन में विवाह 
से पहले रहता था। कार दस मिनट में २३ रैले ड्राइव के सामने पहुंच गई। कार एक ओर 
खड़ी की और ना जाने क्योंबिना सोचेसमझे ही उंगली उस मकान की घंटी के बटन पर 
दबा दी। 
एक अंग्रेज़ बूढ़े ने छोटे से कुत्ते के साथ दरवाजा खोला।  कुत्ते ने भौंकना शुरू 
कर दिया। मैंने उस वृद्ध को बताया कि लगभग ३० वर्ष पहले मैं इस मकान में किराएदार 
था। बस, इधर से गुजर रहा था तो पुरानी याद आगई...।" इस से पहले कि मैं 
आगे कुछ कहता, बूढ़े ने बड़े रूखेपन से कहना आरम्भ कर दिया। 
" यदि तुम इस मकान को खरीदने के विचार से आए हो तो वापस चले जाओ। इन 
दीवारों में केरी और चार्ल्स की यादें बसी हुई हैं। चार्ल्स की माँ, मेरी पत्नि तो मुझे कब 
की छोड़ गई।....चार्ली अमेरिका से एक दिन अवश्य आएगा।... हां, कहीं उसका फोन 
ना आजाये?"
इतना कहतेकहते उस ने दरवाजा बंद कर लिया। अंदर से कुत्ता अभी भी भौंक 
रहा था।
           सीमा की दृष्टि दरवाजे पर अटकी हुई थी, कह रही थी, " एक और जेम्स वारन!"
- महावीर शर्मा
 
 
महावीर शर्मा
7 HALL Street'
London N12 8DB, UK
E-mails:
mahavir.sharma5@googlemail.com
mahavirpsharma@yahoo.co.uk

 

HTML Comment Box is loading comments...
Free Web Hosting