आम आदमी—- राज सेठ


आम आदमी
गर्दी ही गर्दी, धक्का-मुक्की
घोटालों की घुटन, भ्रष्ट-प्रदूषण
2G ने छीना मोबाइल, CWG ने पॉकेट मारी
फ्लैट छीने “आदर्श” ने, महंगाई ने लाठी मारी,
फिर ब्याज-दरों का, जोरदार एक झटका आया,
मुड़ा-तुड़ा सा, गिरता-पड़ता, किसी तरह मैं बाहर आया
लोकल से नहीं देश से गुजरा हूँ
सड़कों पर गड्ढे बिक रहे, घूसखोरी का बाज़ार है
वक़्त भी अब छिन चुका, कतारों पर कतार है
घुटनों तक भ्रष्ट पानी-कीचड़
नीचे नकली सीमेंट-पत्थर
पैर फंसा ठोकर लगकर
गहरी चोट लगी दिलपर
रास्ते से नहीं देश से गुजरा हूँ
सुर्ख़ियों से पेपर गंदे-गीले
“एक बलात्कार, कुछ और घोटाले”
लोकपाल सिर्फ बहस है, उम्मीद यही संसद से
सच की भूख मिटे कैसे, महंगाई पर झूठे मत से!
अन्ना की आग भड़कने को है
त्रिनेत्र बस अब खुलने को है
आक्रोश के चंद सिक्के मुठ्ठी में भीचे,
भड़क रहा हूँ, भटक रहा हूँ मैं
इस देश से बस गुजर रहा हूँ मैं

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