कहां टिके यकीन बाबा
क्रान्ति का बजा तो बिगुल
खुद के बचाव के लिये
महिलावेश धर निकल गये
बाबाओं के किले डकार रहे
ट्रको सोने की सिल्लियां
और नोटो की गड्डियां
देश में होगे ऐसे बाबा तो क्या होगा ?
गरीब और गरीब विकास पर ग्रहण
समझ में आ गया
स्वार्थ में डूबे और राजनीति की सरिता में नहाये
जोगी हो या भोगी
सब आमआदमी और देश को छल रहे ।