जब खुद का जीवन बोझिल हो–बिजेंद्र एस. ‘मनु’


जब खुद का जीवन बोझिल हो
नींद कहाँ होगी आँखों में, जिसका प्रियतम ओझल हो I
कहाँ हिम्मत है जग ढ़ोने की, जब खुद का जीवन बोझिल हो II
मुर्दा घूमते रहते है जब, प्रियतमा का साथ नहीं,
उसका साथ है तो सदा ही दिन है, जीवन में कोई रात नहीं,
उनका हाल तो और बुरा है, जो जीवन प्यार का रोगिल हो I
कहाँ हिम्मत है जग ढ़ोने की, जब खुद का जीवन बोझिल हो II
साँसे भी थम जाती है, जब तक न देखू नूर तेरा,
मेरा प्यार तो रहा तडफता, रहना देखा जब दूर तेरा,
लुटती देखी मैंने दुनिया है, जिसका जीवन जोगिल हो I
कहाँ है हिम्मत जग ढ़ोने की, जब खुद का जीवन बोझिल हो II
कब तक सहूँ मैं विरह तेरा, कहकर सच्चा ये प्यार तेरा,
वही प्यार जिन्दा रखता है, प्यार का जो है सार तेरा,
वो जियेगा तेरे बिन कैसे, जीवन ही जिसका योगिल हो I
कहाँ हिम्मत है जग ढ़ोने की, जब खुद का जीवन बोझिल हो II

HTML Comment Box is loading comments...
 

Free Web Hosting