कठपुतली
कठपुतली
हो उसके हाथों की
फिर नाज़
-नख़रा कैसा
?
नाचो
जैसे नाचाता है
वह आका़
है तुम्हारा ----
धागें
हैं उसके हाथों में
कभी
कत्थक,
कभी
कथकली
कभी
ओड़िसी
,कभी
नाट्यम
करवाएं
हैं तुम से -----
कराएँ
हैं नौं रस भी अभिनीत
जीवन के
नाट्य मंच पर
हँसो या
रोओं
विरोध
करो या
हो विनीत
नाचना तो
होगा ही
धागे वो
जो थामें हैं -----
डॉ. सुधा
ओम ढींगरा