कुछ यूं ही...
-अजन्ता
शर्मा
जिन्दगी चल ! तुझे बांटती हूँ
उनसे कट कर,
खुद को काटती हूँ
कितनों में जिया,
कितनों ने मारा मुझे
लम्हों को कुछ इस तरह छांटती हूँ
ठूंठ मे बची हरी टहनियां चुनकर
नाम उनका ले,
ज़मीं में गाडती हूँ
जिन्दगी चल ! तुझे बांटती हूँ...